Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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भाग
PLACE
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अर्थ-संख्याका अर्थ भेदोंकी गिनती करना है और वह एक दो तीन संख्यात असंख्यात और अनंत प्रकारकी है। सत्ताके आश्रय-विद्यमान पदार्थके रहते ही वह संख्यात आदि संख्या कही जा सकती है।
अविद्यमान आकाशके फूल आदि पदार्थों की संख्यात आदि संख्या नहीं कही जा सकती। इस रीतिसे 5 सत्के आधीन संख्याका स्वरूप निरूपण रहनेके कारण सत्के बाद सूत्रमें संख्या शब्दका पाठरक्खा गया है।
नितिसंख्यस्य निवासविप्रतिपत्तेः क्षेत्राभिधानं ॥४॥ क्षेत्रका अर्थ वर्तमान निवास स्थान है। जिस पदार्यके भेदोंका ज्ञान हो चुका है उसीमें यह हूँ विवाद होता है कि वह ऊपर है वा नीचे है वा तिरछा है ? इसलिए उस पदार्षका यह निश्चय करानेकै हूँ लिए कि वह ऊपर ही है वा नीचे और तिरछा ही है, सूत्रों क्षेत्र शब्दका पाठ रक्खा गया है इस है रीतिसे संख्याके आधीन क्षेत्रकी सार्थकता होने के कारण संख्याके बाद क्षेत्रका सूत्रमें उल्लेख है।
अवस्थाविशेषस्य वैचित्र्यात्रिकालविषयोपश्लेषनिश्चयार्थ स्पर्शनं ॥५॥ __अवस्था विशेष-पदार्थोके रहनेके स्थान त्रिकोण चतु:कोण आदि अनेक प्रकारके हैं। उनका तीनोंकाल पदार्थोंके साथ संबंध रहना स्पर्शन कहलाता है अर्थात् जिस अधिकरणमें तीनोंकाल पदार्थे ६ रह सके उस अधिकरणका नाम स्पर्शन है। जिस तरह किसी किसी द्रव्यका स्पर्शन-क्षेत्र ही है अर्थात् टू धर्म द्रव्य अधर्म द्रव्य आकाश द्रव्य और कालद्रव्य तीनों कालमें आकाशमें ही रहती है इसलिए इन है
द्रव्योंका स्पर्शन आकाश क्षेत्र है । कई एक पदार्थों का द्रव्य ही स्पर्शन है अर्थात् ज्ञानादि गुण आत्मामें तीनोंकाल नियमसे रहते हैं। रूपादि गुण पुद्गलमें तीनोंकाल नियमसे रहते हैं इसलिए ज्ञान आदि गुणोंका स्पर्शन आत्मा द्रव्य और रूप आदि गुणोंका स्पर्शन पुद्गल द्रव्य है। कई एक पदार्थों का छह
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