Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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16 वे अविराधी हैं। उनमें जीवके अनादि पारिणामिक चैतन्य जीवत्व, द्रव्यत्व, भव्यत्व, अथवा अंभव्यत्व
IP ऊर्ध्वगति स्वभाव और अस्तित्व आदिके साथ औदयिक आदिभाव यथासंभव एक साथ होते हैं इस- ..1 लिये वे आपसमें अविरोधी हैं। तथा नारक तियंच देव मनुष्य स्त्री पुंलिंग नपुंसकलिंग एकद्रय दोइंद्रिय
७ तेइंद्रिय चौइंद्रिय पंचेंद्रिय बाल्य कौमार क्रोध और हर्ष आदि गुण आपसमें एक साथ एक जगहंपर 8 8 नहीं होते इसलिये विरोधी हैं । पुद्गलके अनादि पारिणामिक रूप रस गंध स्पर्श शन्द सामान्य 8 % अस्तित्व आदि धर्म, सफेद १ काला २ नीला ३ पीला ४ और लाल ५ ये पांच रंग, तीखा १ आम्ल २ हूँ हूँ कडवा ३ मीठा और कषेला ५ ये पांच रस, सुगंधि १दुगंधि २ ये दो गंध, कोमल १ कठिन २ भारी ३ हैं है हलका ४ ठंडा ५गरम ६ चिकना ७ और रूखा ये आठ स्पर्श तथातत वितत आदि छै प्रकारका शब्द है है इसप्रकार इन पर्यायोंके साथ हरएक दोरूप आदिकाएक तीन चार पांच संख्यात अनंतगुणस्वरूप परिण-है 2 मन हुआ करता है इसलिए इन पर्यायोंके एक साथ एक जगह होनेके कारण वे आपसमें विरोधरहित हैं 2 और सफेद काला नीला तीखा कडवा सुगंध और दुर्गध आदि पर्यायें परमाणुओंमें स्वभावजानित हैं, ६ प्रयोगजनित नहीं हैं और स्कंधोंमें प्रयत्नजनित भी हैं। स्वभावजनित भी हैं एक साथ परमाणु वा ६ ६ स्कंधोंमें नहीं रहतीं इसलिए वे आपसमें एक दूसरेके विरोधी हैं । इसप्रकार जीव और पुद्गलकी अपेक्षा हूँ टू विरोधी और अविरोधी धर्मोंका स्वरूप वर्णन किया गया है इसी तरह धर्मास्तिकाय आदि द्रव्योंके भी ९ अमृतत्व अचेतनत्व असंख्येय प्रदेशत्व गति कारण स्वभाव और अस्तित्व आदि धर्म अगुरु लघु गुणके है
१-भव्यत्व तथा अमष्यत्व दोनों एक साथ नहीं रह सकते इसलिए नीवत्व आदिके साथ इन दोनोंमें एक किसीका अविरोष समझना चाहिये।
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