Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
।
अध्याय
तरा
उत्पाद पूर्वमें एक करोड पद हैं। दूसरे अप्रायणी पूर्व में छयानवै लाख पद हैं। तीसरे वीर्यप्रावदमें 15 सचर लाख पद हैं। चौथे आस्तिनास्तिप्रवाद पूर्वमें साठ लाख पद हैं। पांचवें ज्ञानप्रवाद पूर्वमें एक
कम एक करोड पद हैं। छठे सत्य प्रवाद पूर्वमें एक करोड छह पद हैं। सातवे आत्म प्रवाद पूर्वमें छब्बीस
करोड पद हैं। आठवें कर्म प्रवाद पूर्वमें एक करोड अस्सी लाख पद हैं। नौवें प्रत्याख्यान पूर्वमें चौरासी है लाख पद हैं।दश। विद्यानुवाद पूर्वमें एक करोड दशलाख पद हैं। ग्यारहवें कल्याण वाद पूर्वमें छब्बीस
करोड पद हैं। वारहवें प्राणावाय पूर्वमें तेरह.करोड पद हैं। तेरहवें क्रिया विशाल पूर्वमें नौ करोड पद
हैं और चौदहवें त्रिलोकविंदुसारपूर्वमें बारह करोड पचास लाख पद हैं । श्रुतज्ञानका विशेष स्वरूप || श्रीगोम्मटसार और वृहद् हरिवंशपुराणमें निरूपण किया है।
आरातीयाचार्यकृतांगार्थ-प्रत्यासन्नरूपमंगवायं ॥१३॥
तदनेकविध कालिकोत्कालिकादिविकल्पात् ॥१४॥ कालके दोषसे अल्प बुद्धि अल्प आयु और अल्प बलके धारक जीवोंके उपकारकी इच्छासे, शास्रके रहस्यके जानकार और गणघरोंके शिष्य प्रशिष्य कहे जाने वाले ऐसे आरातीय (पीछे होने वाले).
१। गाथा-परणहदाल पणतीस तीस परणास परण तेरसदं । णउदी दुदाल पुब्वे पणण्णा तेरससयाई ॥ ३६ ॥ छस्सय पण्णासाई चउसयपण्णास छ तपपणुवीसा । विहि लक्खेहि दु गुणिया पंचम रूऊण छज्जुदा उहे ॥३६६ ॥
छाया-पंचाशदष्टचत्वारिंशत् पंचत्रिंशत् त्रिंशत् पंचाशत् पंचाशत् त्रयोदशशतं ।
नवतिः द्वाचत्वारिंशव पूर्व पंचपंचाशन त्रयोदशशतानि ॥ ३६५ ॥ पट्छतपंचाशानि चतुम्शतपंचाशत् षट्छतपंचविंशतिः । द्वाभ्या लक्षाभ्यां तु गुणितानि पंचमं रूपोनं षट्युतानि षष्ठे ।। ३६६ ।। गोमट्टसार जीवकांड। -
ASSHRECOREGORIGINGRECORGANSAR
--
RECAUSAGESCAREFREEGALOREGLAMOUS
।
६ ३७५