Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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बध्याम
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सीता देवीका निवासस्थान है । यह माल्यवान गजदंतको विदीर्ण कर पूर्व विदेहके मध्यभागमें गई है | एवं पूर्व समुद्रमें जाकर प्रविष्ट हुई है।
उदींच्यतोरणद्वारनिर्गता नरकांता॥७॥ नील पर्वतके ऊपर उसी केसरी सरोवरके उत्तरकी ओरके तोरणद्वारसे नरकांता महा नदीका ६ जन्म हुआ है। इसका कुल स्वरूप वर्णन हरित महानदीके समान समझ लेना चाहिये । इतना विशेष
है कि-नरकांता महानदीके कुंडके प्रासादमें नरकांता महादेवीका निवासस्थान है और यह गंधवान वृत्तवेदान्यकी प्रदक्षिणा कर पश्चिम समुद्रमें जाकर प्रविष्ट हुई है।
महापुंडरीकहदप्रभवा दक्षिणतोरणद्वारनिर्गता नारी ॥१०॥ रुक्मी पर्वतके ऊपर महापुंडरीक सरोवरके दक्षिणकी ओरके तोरण द्वारसे नारी महानदीका उदय हुआ है। इसकी समस्त रचना हरिकांता नदीके समान समझ लेना चाहिये । विशेष इतना है कि-नारी ६ कुंडके प्रासादमें नारी देवीका निवास है एवं गंधवान वृत्तवेदात्यकी प्रदक्षिणा कर पूर्व समुद्र में जाकर 8 मिली है।
__ उदीयद्वारनिर्गता रूप्यकूला ॥ ११॥ ___ उसी महापुंडरीक सरोवरके उत्तरकी ओरके तोरण द्वारसे रूप्पकूला महानदीका जन्म हुआ है। इसकी कुल रचना रोहित नदीके समान समझ लेनी चाहिये । विशेष इतना है कि-रूप्यकूलाके कुंडके प्रासादमें रूप्यकूला नामकी देवीका निवास स्थान है एवं यह माल्यवान वृतवेदान्यकी प्रदक्षिगा कर पश्चिम समुद्र में जाकर प्रविष्ट हुई है।
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