Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
अध्याय
की अपेक्षा अल्पविषय क्षायिकसम्यक्त्व है इसलिये औपशमिकके बाद सूत्रमें क्षायिक शब्दका पाठ ॥६है । उसके वाद अधिक विषय होनेसे क्षायोपशमिक सम्यक्त्वका पाठ रक्खा गया है।
तदनंतगुणत्वादते द्वयवचनं ॥१३॥ तेरेव चात्मनः समधिगमात ॥ १४॥ सर्वजीवतुल्यत्वाच्च ॥ १५॥ ___ औदयिक और पारिणामिक भाव सर्व जीवोंके पाये जाते हैं इसलिये औपशमिक आदिकी अपेक्षा
औदायक और पारिणामिक अनंत गुणे होनेके कारण सबके अंतमें इन दोनोंका उल्लेख किया गया | है। और भी यह बात है कि__आत्मा पदार्थ अतींद्रिय है उसका ज्ञान मनुष्य तिथंच आदि औदयिक भावोंके द्वारा और चैतन्य | || जीवत्व आदि पारिणामिक भावोंके द्वारा होता है । यदि मनुष्य तिर्यंच वा चैतन्य जीवत्व आदि न FI हो तो आत्माका ज्ञान ही न हो सकेगा इसलिये सामान्यरूपसे आत्माके ज्ञापक होनेके कारण औदयिक | हूँ और पारिणामिक भावोंका सबसे अंतमें उल्लेख किया गया है । तथा
___ औदयिक और पारिणामिक दोनों भाव समस्त संसारी जीवोंके समान हैं इसलिये भव्य अभव्य | || दोनों प्रकारके जीवोंके होने के कारण सामान्य भाव होनेसे सब भावोंके अंतमें उनका उल्लेख किया | गया है। शंका
तत्त्वमिति वहुवचनप्रसंग इति चेन्न भावस्यैकत्वात् ॥ १६॥ - औपशमिक क्षायिक आदि पांच भाव तत्व है यहाँपर तत्व शब्द विशेष्य और औपशमिक आदि | || विशेषण हैं। यह प्रायः नियम है कि विशेषण और विशेष्य दोनोंके लिंग और वचन समान रहते हैं। | यहाँपर औपशमिक आदि विशेषण बहुत हैं इसलिये तत्व शब्द वहुवचनांत कहना चाहिये 'तत्त्वं' यह
ABREAAAAAAAAEESPEEG
BिABBABASAGAOREAS
॥ ५०९