Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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- आस्यविष र दृष्टिविष २ क्षीराखावी ३ मध्वासवी सपिराखावी ५ और अमृतास्रवी के भेदसे ||
अध्याप 18 सार्द्ध प्राप्तार्य छंह प्रकारके हैं। जो प्रकृष्टतपके धारक मुनिगण जिसको यह कह देते हैं कि 'तू मरजा'
| तो वह तत्काल विषपरीत मूर्छित होकर मर जाता है वे मुनिगण आस्यविष नामक ऋद्धिके धारक कहे ||४|| है जाते हैं । जो प्रकृष्ट तपके धारक प्रचण्डकोधी हो जिसे आंख उठाकर देखदें तो वह तत्काल महाविषसेल | व्याप्त होकर मर जाय ऐसी सामर्थ्यके धारक मुनिगण दृष्टिविष नामकी ऋद्धिके धारक कहे जाते हैं। जिनके हाथपर रक्खा हुआ विरस भी भोजन क्षौरके रसके समान स्वादिष्ट हो जाता है अथवा जिनके वचन दीन दरिद्री प्राणियोंको क्षारके समान संतुष्ट करनेवाले होते हैं वे क्षीराखवी नामक ऋद्धिधारी
कहे जाते हैं। जिनके हाथपर रक्खा हुआ नीरस भी आहार मधु (शइद) के रसके समान स्वादिष्ट | पुष्टि करनेवाला होता है अथवा जिनके मनोहर वचन दुःखसे पीडित श्रोताओंको मधुके समान पुष्टि करनेवाले होते हैं वे मध्वासवी नामके ऋद्धिधारी कहे जाते हैं। जिन मुनियोंके हाथमें गया हुआ रूखा भी भोजन घीके रस और धोके बलस्वरूप परिणत हो जाता है अथवा जिनके मनोहर वचन घोके
समान प्राणियोंको तृप्त करते हैं वे सर्पिराखावी नामके ऋद्धिधारी कहे जाते हैं। तथा जिनके हाथपर रक्खा P हुआ भोजन कुछ अमृत सरीखा परिणत हो जाता है अथवा जिनके वचन सुननेवालोंको अमृत सरीखे | मीठे लगते हैं वे अमृतास्रवी नामके ऋद्धिधारी कहे जाते हैं।
क्षेत्रर्द्धिप्राप्त आर्य दो प्रकारके हैं एक अक्षीणमहानस और दूसरे अक्षीणमहालय -- लाभांतरायें 5 कर्मके तीन क्षयोपशमके धारक मुनियोंको जिस भाजनसे आहार दिया जाता है उस भाजनसे यदि
चक्रवर्तीका कटक भी जीम जाय तो उस दिन अन्न कम न हो इसप्रकारकी सामर्थ्यके धारक मुनिगण
RASAGARAASHASABASISAR
RABARCORRECIRBALVALUORKERSBAURAR