Book Title: Shant Sudharas Author(s): Vinayvijay Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar View full book textPage 4
________________ अर्थ :- भावना के बिना विद्वानों के हृदय में भी शान्तसुधारस (अमृत का रस) उत्पन्न नहीं होता है, जबकि मोह और विषादरुपी विष से भरे हुए इस संसार में उसके बिना क्षणमात्र भी सुख नहीं है ॥२॥ यदि भवभ्रमखेदपराङ्मुखं, यदि च चित्तमनन्तसुखोन्मुखम् । शृणुत तत्सुधियः शुभ-भावना-मृतरसं मम शान्तसुधारसम् ॥३ ॥ द्रुतविलम्बित अर्थ :- हे बुद्धिमानो ! संसार-परिभ्रमण से यदि आपका मन पराङ्मुख बना हो और अनन्त सुख को पाने के लिए आपका मन उन्मुख बना हो, तो शुभ-भावना रुपी अमृत रस से भरपूर मेरे इस 'शान्त सुधारस' का श्रवण करो ॥३॥ सुमनसो मनसि श्रुतपावना, निदधतांद्वयधिका दशभावनाः। यदिह रोहति मोहतिरोहिताद्- भुतगतिर्विदिता समतालता॥४॥ अर्थ :- हे सुन्दर मन वाले ! कानों को पवित्र करने वाली बारह भावनाओं को अपने मन में धारण करो, जिसके परिणामस्वरुप मोह से तिरोहित बनी, जिसकी अद्भुत शक्ति है, वह सुप्रसिद्ध समतारुपी लता अंकुरित होगी ॥४॥ आर्त्तरौद्रपरिणामपावक-प्लुष्टभावुकविवेकसौष्ठवे । मानसे विषयलोलुपात्मनां, क्व प्ररोहतितमां शमाङ्करः ॥५॥ रथोद्धता शांत-सुधारसPage Navigation
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