Book Title: Sanskrit and Prakrit Manuscripts Jaipur Collection Part 11
Author(s): M Vinaysagar, Jamunalal Baldwa
Publisher: Rajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
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Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur (Jaipur-Collection) इति श्रीमत्कलद्विजवर्य मीमांसावागीश - होशिंगोपनामक भट्टविश्वनाथात्मजरामभट्टकृतः सूत्रोक्तदर्श श्राद्धप्रयोगः समाप्तः ।।
गाडी गोपाल महादेवेनाले खि ।
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256/5585 कुण्डारांव
॥ श्रीगणेशाय नमः ॥
नमस्कार माझा सो मोरवाला | महाकालिके सुन्दरे शारदेला । मनी वंदिते सर्वदा सद्गुरूते । क्रियातीत व्यापूनि राहे जगाते || १|| अनेक ग्रन्थार्थ बहुत यत्नें । पाहूनि पांगु फिलि शब्द यत्नें ॥
या गांगकुण्डे असती प्रमाणे । तें बोलिलीं साधुनि श्रीधराने || २ ||
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हे मेखला पंचक वर्णं जाणें । द्विमेखला श्वेत सुरक्तवर्णे ।
षडंश के उच्च हिरूद मेखला । ते श्वेतवर्णा बरवी विशाला ।। १६४ ।।
श्री रामभट्टात्मज श्री लघूजो । शीवार्चनी तत्पर सर्वदा जो । त्याला असे पुत्रहि कृष्णभट्ट । तत्पुत्र नागेश हि सर्वश्र ेष्ठ ॥ १६५॥ तत्पुत्र श्रीसूर्य हि वत्सगोत्री । तत्पुत्र जो श्रीधर अग्निहोत्री । तेणें असे मंदमती सकेला । संपूर्ण कुण्डार्णव सिद्ध गेला ।। १६६ ॥ ।
इति श्रीधरकृत कुण्डार्णव समाप्तः ।
हें पुस्तक वारोपनामक पुरुषोत्तमेन लिखितं ॥ श्री जगदम्बा प्रसन्
333/2694 श्राद्धकारिकासंग्रह
॥ श्रीगणेशाय नमः अथ श्राद्धकारिका ॥
श्रीगुरु गणनाथञ्च पितरं सुखशङ्करम् । त्त्वा चैवं प्रकुर्वीत संग्रहः श्राद्धकारिका || १||
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शुक्लोपमो जगन्नाथ सुखशङ्कर प्रात्मजः । कारिकासंग्रहेणैव कर्त्तव्यः श्राद्धसिद्धये ||५||
इति श्रीश्राद्धकारिका समाप्तम् ॥
संवत् १९२८ शा० १७९३ माघमासे कृष्णपक्षे नवम्यां भृगुवासरे रमा - वल्लभ शर्मा च हरिदुर्गे लिपिकृतम् ||
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