Book Title: Sanskrit and Prakrit Manuscripts Jaipur Collection Part 11
Author(s): M Vinaysagar, Jamunalal Baldwa
Publisher: Rajasthan Oriental Research Institute Jodhpur

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Page 618
________________ 515 Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts, Pt. XI (Appendix) मेर्वण्वोर्मज्जतोर्यद्वत्तत्त्ववर्ण्य न सूरिरणा । मिथ्यात्वान्नव वर्ण्य स्याद् वेदतत्त्वविजानता ॥११॥ तथापि योग्यमेवस्याद् व्यवहारावलम्बनात् । कृष्णेनापि च पार्थाय वेदार्थस्य निरूपणात् ।।१२।। श्रीकृष्णसूरि रचितं वेदतत्त्वनिरूपणम् । प्रीत्यै भूयाद् भगवतः श्रीकृष्णस्याग्रशाखिनः ॥१६॥ xx Closing : पुराणेष्वेवं विधेषु परस्परविरोधेषु सत्सु युगकल्पभेदकल्पनयैव सम्पादनीयत्वात् इति दिक् । शुक्लशाखिनां ब्राह्मणानां माहात्म्यबोधकादित्य पुराणवचनानि अनुक्रमेण पठिष्यामः। Colophon: इति वेदतत्त्वनिरूपणे दुष्टखण्डननिरूपणं नाम द्वितीयं प्रकरणम् । समाप्तोऽयं ग्रन्थः । 1327/6194 चतुःशरणप्रकीर्णक-सस्तबक Opening : ॐ नमो वीतरागाय। सावज्जजोग विरई उक्कित्तण गुणवप्रोग्र पडिवत्ती । खलियस्स निदरण वरणतिगिच्छ गुणधारणा चेव ।।१।। सार्वज कहीयइ सपाप व्यापार, प्रढारे पापना जे थान तेहनी विरइ कहतां त्याग विरति, ते सामायक कहीयइ प्रथमा अावसग ।१। उक्कित्तण कहतां २४ तीर्थकरना गुण वखारणइ, लोकस उजोगरी कहइ ।२। गुणवउ कहतां गुणवंत, २७ गुणे करी विराजमान गुरु, पडिवत्ती कहतां तेहना गुण बखाणे, वांदणां देई । ३। वरत परते जे लागो होइ अतिचार ते पडक मणे करी चितारे ।४। वरणफोडो तेहनी तिगछा सारो कर इ, तिम काउसग करी शुद्ध ।५। गुण ते पचखाण धारणा ते चितारइ ।६। ए ६ प्रावसगइ ।।१।। xxx Colophon: इति श्री चउसरण प्रकरण पइन्नं समाप्तमिदम् । इति श्री चतुसरण नामा प (य) ना नो अर्थ लेशमात्र टीका थकी महाऋष श्रीगोकलजी नाम्ना अत्र स्वबुद्ध अनुसारइ लिखितं गंगाराम नाम्ना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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