Book Title: Sanskrit and Prakrit Manuscripts Jaipur Collection Part 11
Author(s): M Vinaysagar, Jamunalal Baldwa
Publisher: Rajasthan Oriental Research Institute Jodhpur

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Page 626
________________ Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts, Pt. XI (Appendix) 523 Colophon: श्री ६ आचार्य ऋषि श्री कपसीहजी कृतं महावीर स्तवनं ऋ० श्री हीरा पठनार्थम् ।। श्री॥ 1850/7038 (10) सरस्वतीस्तोत्रम् Opening : त्रिजगदीशजिनेन्द्रमुखोद्भवा, त्रिजगति जनजातहितङ्करा । त्रिभुवनेशनुता हि सरस्वती, चिदुपलब्धिमियं वितनोतु मे ।।१।। अखिलनाकशिवाध्वनिदीपिका, नवनयेषु विरोधविनाशिनी । मुनिमनोम्बुजमोदनभानुभा, चिदुपलब्धिमियं वितनोतु मे ॥ Closing: विविधकाव्यकृते मतिसम्भवे, भवति चापि तदर्थ विचारणे । यद्विभक्तिलसन्वित मानवे, चिदुपलब्धिमियं वितनोतु मे ॥१०॥ योऽहनिशं पठति मानसुभक्तिसारः, स्यादेव तस्य भवनीरसमूहपारः । मुक्तिजिनेन्द्रवचसो हृदये च हारः । श्री ज्ञानभूषणमुनि स्तवनं चकार ॥१॥ Colophon: इति सरस्वतीस्तुति समाप्ता। 1852/7031 (9) सरस्वतीस्तोत्रम् Opening: जलधिनन्दनचन्द्रमा - सदृशमूत्तिरियं परमेश्वरी । निखिल जाड्यजठोग्रकुठारिका. दिशतु मेऽभिमतानि सरस्वती ।।१।। वरददक्षिणबाहुघृताक्षिका, विशदवामकरापितपुस्तिका । उभयपाणिपयोजघृताम्बुजा, दिशतु मेऽभिमतानि सरस्वती ॥२॥ Closing : मलयचन्दनचन्द्ररजःकणा, प्रकरशुभ्रदुकूलपटावृता । विशदहंसकहारविभूषिता, दिशतु मेऽमिमतानि सरस्वती ।।६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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