Book Title: Bhagwati Sutra Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1069
________________ २०४६ भगवैतीसौ समर्थः । अस्ति खलु भदन्त ! तमस्काये उदारा बलाहकाः संस्वियन्ति, स मूर्च्छन्ति, सवर्पन्ति ? हन्त, अस्ति । तद् भदन्त ! किं देवः प्रकरोति, आरः प्रकरोति, नागः प्रकरोति ? गौतम ! देवोऽपि मकरोति, असुरो. ऽपि प्रकरोति, नागोऽपि प्रकरोति । अस्ति खल्लु भदन्त ! तमस्काये वादरः स्तनितशब्दा, बादरा विद्युत् ? हन्त, अस्ति ताम् । भदन्त ! किं देवः प्रकरोति, में क्या नाम है, यावत् सन्निवेश हैं ? (णो इणहे समडे) हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। ( अत्थिणं भते! तमुक्काए उराला बलाया संसेयंति संमुच्छनि संवासंति वा) हे भदन्त । तमस्काय में क्या बड़े २ मेघ गीला करने वाला स्निग्ध पुद्गलों द्वारा गीले हो जाते हैं ? संमूच्छित-परस्पर में वे एकत्रित होते हैं ! (हता, अस्थि) हाँ गौतम ! ऐसा होता है । (तं भंते । किं देवो पकरेइ, असुरो पकरेइ, नागो पकरेइ ? ) हे भदन्त ! संस्वेदन आदि को देव करता है ? या अस्तुर करता है ? या नाग करता है ? (गोयमा ! देवो विपकरेइ, असुरो विपकरेइ, जागो वि एकरेइ) हे गौतम! उस संस्वेदन आदि को देव भी करता है, असुर भी करता है और नाग भी करता है। (अत्यि णं भंते । तमुकाए बायरे थणियसदे, बायरे विज्जुए) हे भदन्त तमस्काय में बादर (अस्थि ण भंते ! तमुक्काए गामाइ वा जाव सन्निवेसाह वा ) 3 महन्त ! - શું તમસ્કાયમાં ગામ હોય છે? સન્નિવેશ પર્યન્તનાં સ્થાને હોય છે ? (णो इणढे समढे) 3 गौतम ! तभायमा गाम माह પણ હેતું નથી. (अस्थि णं भंते ! उरामा वलाया संसेयंति, समुच्छति, संवासंति वा १) હે ભદન્ત ! શું વિશાળ મેઘ (વાદળાંઓ) તમકામાં ભીંજાવનારા સ્નિગ્ધ પુદ્ગલ દ્વારા ભીંજાય છે ખરાં? પરસ્પરમાં એકત્રિત થાય છે ખરાં? १२से छ म १ (हता अस्थि ) &ी, गौतम थाय छे. (त भंते ! किं देवोपकरेइ, असुरो पकरेइ, नागो पकरेइ १ ) 3 महन्त ! સર્વેદન આદિ દેવ કરે છે? કે અસુર કરે છે? કે નાગ કરે છે? (गोयमा ! देवो वि परेइ, असुरो वि पकरेइ, णागो वि परेइ) હે ગૌતમ! તે સર્વેદન આદિ દેવ પણ કરે છે ? અસુર પણ કરે છે અને નાગ પણ કરે છે? (अस्थि गं भंते ! तमुकाए बायरे थणियसदे, बायरे विज्जुए ) 3 rd ! તે તમસ્કાયમાં શું ખાદર સ્વનિત શબ્દ-ઘનગર્જન થાય છે ? બાદર વિદ્યુત થાય છે?

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