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areन्द्रिका टी० श० ६ ३०५ सू० २ कृष्णरा जिस्वरूपनिरूपणम
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एककां संख्यातयोजनसहस्रविस्तारां कृष्णराजिं व्यतिव्रजेत् व्यतिक्रामेत्, किन्तु ' अत्येगइयं कण्हराईणो वीईवएज्जा' अस्त्येककाम् असं ख्यातयोजन सहस्रविस्तारां कृष्णराजिं नो व्यतिव्रजेत् नो व्यतिक्रामेत् ।
तदुपसंहरन्नाह - ' एमहालियाओ णं गोयमा ! कण्हराईओ पण्णत्ताओ' हे गौतम ! इयमहालयाः इयद्द्महत्यः खलु कृष्णराजयः प्रज्ञप्ताः । गौतमः पृच्छति'अस्थि णं भंते! कण्डराईसु गेहा इ वा, गेहावणा इवा 3 दन्त ! अस्ति संभवति खलु कृष्णराजिषु गेहानि गृहाः इति वा भवन्ति ? गेहापणाः गृहहट्टाः इति भवन्ति ? भगवानाह - 'णो इणट्ठे समट्ठे' हे गौतम ! नायमर्थः समर्थः, कृष्णराजिषु गृहाः, गृहापणा वा न भवन्तीतिभावः । गौतमः पृच्छति' अत्थि णं भंते ! वीवइज्जा) किसी एक कृष्णराजी तक पहुँच सकता है। अर्थात् संख्यात हजार योजन विस्तार वाली कृष्णराजी तक जा सकता है । किन्तु (अत्थेगइयं कण्हराई णो वीईवएजा ) असंख्यात हजार योजन विस्तार वाली कृष्णराजितक नहीं जा सकता है । ( एमहालियाओ णं गोमा कन्हईओ पण्णत्ताओ) इतनी महान् हे गौतम | ये कृष्णराजियां हैं। अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं कि - ( अस्थि भंते! कण्हराई हाइ वा, गेहावणाह वा ) हे भदन्त ! क्या यह बात संभवित है कि इन कृष्णराजियों में घर हों और घर हाट हों ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं कि हे गौतम! ( णो इण्डे समट्ठे ) यह अर्थ समर्थ नहीं है- अर्थात् कृष्णराजियों में न घर संभवित हैं और न गृहापण ही संभावित है। ठीक है - ये सब वहां पर नहीं हैं तो ( अस्थि णं भंते ! સખ્યાત હજાર ચાજનના વિસ્તારવાળી કૃષ્ણુરાજિ સુધી તે જઈ શકે છે, परन्तु (अत्थे कण्हराइ णो वीईवएज्जा ) असभ्यात तर योनना विस्तारवाजी गुणगुरात्रि सुधी ते भई शहुती नथी. (ए महालियाओ णं गोयमा ! कण्हरा ईओ पण्णत्ताओ ) हे गौतम! मेटली मधी विस्तृत ( विशाण તે કૃષ્ણરાજિએ! હાય છે.
આટલા બધા વિસ્તારવાળી કૃષ્ણરાજિએમાં ઘર આદિ છે કે નહીં તે लावा भाटे गौतम स्वामी या प्रमाणे प्रश्न पूछे छे - ( अस्थि ण भवे !. कण्हराई हाइ वा, गेहावणाइ वा ? ) डे लहन्त । शु कृष्णुरारिमोभां घर, હાટ આદિ હાવાનું સંભવી શકે છે ખરૂં છુ
भावात संभवित नथी
उत्तर- ( णो इणट्ठे समट्ठे ) हे गौतम! એટલે કે ત્યાં ઘર પણ નથી અને હાટ પણ નથી. ગૌતમ સ્વામીના પ્રશ્ન-ઘર, હાટ આદિ ત્યાં
સંભવિત ન હાય, તા