Book Title: Bhagwati Sutra Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1119
________________ २०१६ भगवतीने कण्हराईसुगामा इ वा जाव-संनिवेसा इ वा ? ' हे भदन्त ! अस्ति संभवति खलु कृष्णराजिषु ग्रामा इति वा, यावत्-निगमाइति वा, मडंबा इति वा, कर्वटा इति चा, पत्तनानि इति वा, द्रोणमुखा इति वा, आश्रमा इति वा, सनिवेशा इति वा किं भवन्ति ? भगवानाह-'णो इणढे सम? ' हे गौतम! नायमर्थः समर्थः, कृष्णराजिषु ग्रामादयो यावत्-सनिवेशा न भवन्तीतिभावः । गौतमः पृच्छति-अस्थि णं भंते ! कण्हराइसुणं उराला वलाहया संसेयंति, सम्मुच्छंति, संवासंति ? ' हे भदन्त ! अस्ति संभवति खलु कृष्णराजिषु उदाराः विशालावलाहका वारिवाहका मेघा इत्यर्थः संस्विद्यन्ति, संस्वेदं पाप्नुवन्ति, संमूर्च्छन्ति परस्पराघटनेन समूच्छिता भवन्ति, संवर्षन्ति ? वृष्टिं कुर्वन्ति ? भगवानाह-' हता, अस्थि, ' हे गौतम ! हन्त, सत्यम् कण्हराईसु गामाइ वा जाव संनिवेसाइ वा) हे भदन्त ! उन कृष्णराजियों में ग्राम यावत् सन्निवेश हैं क्या? यहां यावत् शब्द से (आकर नगर निगम, मडंच, कर्बट,पत्तन, द्रोणमुख, आश्रम) इन स्थानोंका संग्रह हुआ है इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि हे गौतम ! (णो इण समडे) यह अर्थ समर्थ नहीं है-अर्थात् कृष्णराजियां में ग्राम से लेकर सन्निवेश तकके स्थान नहीं हैं। (अस्थि णं भंते ! कण्णराईसु णं उराला घलाहया संसेयंति) हे-भदन्त ! कृष्णराजियों में क्या उदार-विशाल -मेघ संस्वेद को प्राप्त होते हैं ? परस्पर के आघट्टन से क्या वे वहाँ समूच्छित हैं ? क्या वहां वे वृष्टि करते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं कि (हंता अस्थि) हां गौतम ! वहां ऐसा होता है । उदारमेघ वहां संस्वेद . ( अस्थिण मते ! 'कण्हराईसु गामाइ वा जाव संनिवेसाइ वा १) शुत - રાજિઓમાં ગામથી લઈને સન્નિવેશ પર્યન્તના જનસ્થાને હોય છે? અહીં "जाव (पर्यन्त)" ५४थी निगम, भ, , , ५तन, द्रोभुम, भने આશ્રમ" આ સ્થાનેને ગ્રહણ કરવામાં આવ્યા છે તે દરેકને અર્થ તમસ્કાયના સૂત્રમાં આવે છે. महावीर प्रभुना उत्तर-(णो इणठे समठे) 3 गौतम ! म पाd પણ સંભવિત નથી. કૃષ્ણરાજિઓમાં ગામ આદિ કોઈ પણ સ્થાન સંભવી शतुं नथी. गौतम स्वाभाना प्रश्न-(अस्थिण भंते ! कण्णराईसुण उराला बलाहया संसेयंति) 3 महन्त ! ०४निगामा शुGER ( विश) मे संवहन પામે છે? પરસ્પરના આઘટ્ટન (સગથી) શું તેઓ સંમૂછિત (સંજીત એકત્રિત) થાય છે? શું તેઓ ત્યાં વૃદ્ધિ વરસાવે છે? मडावीर प्रभुन। उत्तर-हता अत्थि" , गौतम ! त्यो मे

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