Book Title: Bhagwati Sutra Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1127
________________ ११०४ भगवतीसत्रे उपपन्नपूर्वाः ? पूर्वम्उत्पन्नाः ? भगवानाह-हता, गोयमा ! असई, अदुवा अणंतक्खुत्तो' हे गौतम ! कृप्णराजिषु सर्वे प्राणादयो जीवाः अप्सकृत् भूयो भूयः, अथवा अनन्तकृत्वः अनन्तवारान् पूर्वम् उत्पन्नाः ' णो चेव णं वायरआउकाइयताए, वायरअगणिकाइयत्ताए वा, वायरवणस्सइकाइयत्ताए वा ' किन्तु नो चैत्र खलु वादराप्कायिकतया, नो वा वादराग्निकायिकतया, नैव वा वादरवनस्पतिकायिकतया, ते प्राणादयः पूर्वम् उत्पन्नाः उत्पधन्ते, उत्पत्स्यन्ते वा तेपां तत्र स्वस्थानत्वाभावात् । इति ॥ मू०२॥ लोकान्तिक देववक्तव्यता। कृष्णराजिप्रस्तावात् तन्निकटवर्तिलोकान्तिक देवविमानादिवक्तव्यतामाह'एएसिणं भंते' इत्यादि। मूलम्-एएसि णं अट्टण्हं कण्हराईणं अटुसु उवासंतरेसु अह लोगतियविमाणापण्णत्ता, तंजहा-अच्ची १, अच्चिमाली२, में समस्त प्राण, समस्त भूत, समस्त जीव, समस्त सत्व क्या पहिले उत्पन्न हो चुके है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं कि-(हंता गोयमा ! असई अदुवा अणंतक्खुत्तो' हां, गौतम ! अनेक बार अथवा अनन्तवार समस्तप्राण आदिजीव वहां पूर्व में उत्पन्न हो चुके हैं। (णो चेव णं बायर आउकाइयत्ताए, बायरआगणिकाइयत्ताए वा, बायरवणस्सइकाइयसाए वा) परन्तु वे वहां बादर अप्कायिक रूप से बादर अग्निकायिक रूप से और बादर वनस्पतिकायिक रूप से न पहिले उत्पन्न हुए हैं, न उत्पन्न होते हैं और न उत्पन्न होंगें। क्यों कि उनका वहां पर स्वस्थान नहीं है । सू०२ ॥ भंते ! सव्वे पाणा, भूया, जीवा सत्ता उबवण्णा पुव्वा ?) सह-त! ०. રાજિએમાં શું સમસ્ત પ્રાણ, સમસ્ત ભૂત, સમરત જીવ અને સમસ્ત સત્વ पूर्व (५३i) Sपन्न युध्या छ ? उत्तर-(हता, गोयमा'! असई अदुवा अण तक्खुचो वा ) &ी, गौतम ! સમસ્ત પ્રાણ આદિ અનેકવાર અથવા અનંતવાર તેમાં ઉત્પન્ન થઈ अध्यां छे. (णो चेव ण बायर आउकाइयत्ताए, वायर अगणिकाइयत्ताए वा, बायरवणस्सइकाइयत्ताए वा) ५२न्तु तेथे त्यां मा४२ म4ि3 ३पे माहर અગ્નિકાયિક રૂપે અને બાદર વનસ્પતિકાયિક રૂપે પહેલાં કદી પણ ઉત્પન્ન થયાં નથી, ઉત્પન્ન થતાં નથી અને ઉત્પન્ન થશે પણ નહીં, કારણ કે ત્યાં તેમનું સ્વસ્થાન નથી, એ સૂત્ર ૨ |

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