Book Title: Bhagwati Sutra Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1100
________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श० ६ ० ५ सू०१ तमस्कायस्वरूपनिरूपगम् १०७७ भदन्त ! तमस्काये खलु सर्वेशाणा, भूनाः, जीवा, सत्चाः पृथिवीकायिकतया यावत्-त्रसकायिकतया उपपन्नपूर्वाः पूर्वमुत्पन्नाः ? यावत करणार-जलकायिकतया, वायुकायिस्तया, वनस्पतिकायिकतया, इति संग्राह्यम् । भगवानाह-'हंता, गोयमा ! असई अदुवा, अणंतखत्तो, जो चेव णं वायग्पुढविवाइयत्ताए बा, बायरअगणिकाइत्ताए वा' हे गौतम! हन्त, सत्यम् सर्व प्राणाः, भूताः जीवाः, सत्वाः, तमस्काये पृथिवीकायिकतया यायत्-त्रसकायिकतया असकृत् भूयोभूयः अथवा अनन्तकृत्वः अनन्तवारान् पूर्वमुत्पन्नाः, किन्तु नो चैत्र नैव कथमपि वादरपृथिवीकायिकतया,वादराग्निकायिकतया वा उत्पन्नाः, यतोहि तमस्कायस्य अप्कायिकतया तत्र वादरा बायको बनस्पतयः साश्च उत्पधन्ते अप्काये तेपामुत्पत्तिसंभवात् , इतरे तु पृथिवीजीवा अग्निजीवाश्च तत्र नोत्पत्तुमर्हन्ति तेषां तत्र स्वस्थानत्वा भावात् ।। सू०३ ॥ तमस्कायाकार:-/ वसकायिकरूप से उत्पन्न हुए हैं ? यहां यावत् शद से (जलकायिकतया तेजाकायिकतया, वायुकायिकतया, वनस्पतिकाधिकतया" इस पाठ का संग्रह हुआ है। इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं-(हंता, गोयमा! असई अदुवा अणंतकरयुत्तो, णो चेव णं वायरपुढविकाइयत्ताए वा, बायरअगणिकाइयत्साए वा"हां गौतम! समस्त प्राण, भूत, जीव, सस्व, तमस्काय में पृथिवीकायिकरूप से यावत् उसकायिकरूप से घार २ अथवा अनन्तवार पहिले उत्पन्न हुए हैं परन्तु वे वहां कभी भी बादर पृथिवीकायिकरूप से एवं वादर अग्निकायिकरूप से उत्पन्न नहीं हुए हैं। क्यों कि तमस्काय अप्कायरूप होने के कारण उसमें वादवायुकाय, वनस्पतिकाय और उसकाय उत्पन्न होते हैं क्यों कि वहां उनकी तभायमा पूर्व (पखi) पृथ्वीशयिx, ४यि, तैयि , वायुवि, વનસ્પતિકાયિક અને ત્રસકાયિક રૂપે ઉત્પન્ન થઈ ચુકયાં છે ખરી ? ते उत्तर मापता मडावी२ प्रभु ४ छ- हता, गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो. णो चेव ण बायर पुढविकाइयत्ताए वा, वायर गणिकाइ. यत्ताए वा ) , गौतम ! सभरत प्राण, भूत, ७ मने सरप तभयमा પૃથ્વીકાયિકથી લઈને ત્રસાયિક પર્વતના રૂપે વારંવાર અથવા અનંતવાર પહેલાં ઉત્પન્ન થઈ ચુક્યાં છે, પણ તેઓ ત્યાં કદી પણ બાદર પૃવીકાવિક રૂપે અને બાદર અગ્નિકાયિકરૂપે ઉત્પન્ન થયા નથી. કારણ કે તમાકાય અ. કાય રૂપ હોવાથી તેમાં બાદરે વાયુકાય, વનસ્પતિકાય અને ત્રસકાય ઉત્પન્ન

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