Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका अ ९ भृगापुनचरितवर्णनम् मृलम्-नदणे सो उ पासाए, कीलए संह इथिहि ।
देवे दोगुदंगे चेत्र, निच मुइयमाणसे ॥३॥ छाया-नन्दने स तु प्रासादे, क्रीडति सह स्त्रीभिः ।
देवो दोगुन्दुक इव, नित्य मुदितमानस ॥३॥ टीका-'नदणे' इत्यादि।
मुदितमानस: हृष्टचित्तः स मृगापुत्रो नन्दने-नन्दननामक वास्तुशास्त्रोक्त विशिष्टलक्षणोपेते मासादे दोगुन्दुका त्रायस्त्रिंशो देव इव स्त्रीभिः सह नित्य क्रीडति । 'तु' शब्द. पूरणे ||३|| मूलम्-मणिरयणेकुहिमतले, पासायोलोयणे ठिओ।
आलोएंड नयरस्स, चउक तिगचच्चरे ॥४॥ छापा--मणिरत्नकुहिमतले, प्रासादालोकने स्थित. ।
___आलोकयति नगरस्य, चतुप्फ कि चत्वराणि ||४|| (जुवराया-युवराजः ) युवराज बना दिया था। (दमीसरे-दमीश्वरः) जन्म से ही वह इन्द्रियों को अत्यन्त दमन करने वाले होने से लोग इनको दमीश्वर कहते थे ॥ २ ॥
'नदणे' इत्यादि
अन्वयार्थ-(मुइयमाणसे-मुदितमानसः) प्रसन्नचित्त हो कर यह युवराज (नदणे पासाप-नन्दने प्रासादे) नन्दन नाम के राजमहल में (दोगुदगे देवेव-दौगुन्दुक देव इव) त्रायस्त्रिंश देव की तरह (इत्थि हिं सह कीलए-स्त्रीभिः सह नित्य क्रीडति) स्त्रियों के साथ नित्य क्रीडा किया करते थे ॥ ३ ॥ -दयित अत्यात प्रिय anslat sो भाता पिता सेन जुवराया-युवराज युवरार स्थापित यो दमीसरे-दमीश्वरः मधील से छन्द्रियानुभूमर દમન કરનાર હોવાથી કે તેને દમીશ્વર પણ કહેતા હતા કે ૨ |
"नदणे" त्याह।
सन्यायमुइयमाणसे-मुदितमानस: प्रसन्नयित मनी मे युवरार नदणे पासाए-नन्दने प्रासादे नन्हन नामना मनमा दोगुदगे देवेन्च-दोग न्दक देवइव नायरिंश वनी भा३४ इथिहि सह कीलए-स्त्रिभिः सह नित्य क्रोडति स्मिानी साथै नित्य वीस ४२॥ & ॥ 3 ॥