Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्सराप्ययन
त्यर्थः, समचतुरस समचतचतुरन च समातरम तदस्यास्तीति समचतुरम' समचतुरस्रमस्थानयानित्यर्थ । तथा-सपोटरस-अपस्य-मत्स्यम्य उदर्रामव उदर यस्य स तथा, यथा मत्स्यस्योदर सम कोमल च माति तथैव समझोमलोदरवान् भगवानासीत् । तस्मै भगवतेऽरिटनेमये भार्या मार्यात्वेनेत्यर्थ राजोमती नाम कन्या केशवा कृष्णो याचते-उग्रसेनाद् याचितवानितिभावः ॥ ६ ॥ ____ सा च कीदृशी' इत्याहमूलम्--अहं सो रायवरकण्णा, सुसीला चारुपेहिणी ।
सव्वलक्खणसपन्ना, विजसोया मणिप्पभा ॥७॥ छाया--अथ सा राजवरकन्या, सुशीला चारुमक्षिणी ।
सर्वलक्षणसपन्ना, विद्युत् सौदामिनी प्रभा ॥७॥ टीका-'अहसा' इत्यादि
अथ सा राजवरकन्या राक्षा मध्ये वरस्य श्रेष्ठस्य उग्रसेनस्य कन्या-पुत्री राजीमती मुशीला शोभनाचारयुक्ता चारुपेक्षिणी-चार-मुष्ठ प्रेक्षितु शील यस्या पभनाराच सहनन है। प्रभु का सरनन यही वनस्पभनाराच था। तथा (समचउरसो-समयतुरस्र') सस्थान समचतुत्र था। (ससोयरो-प्रषोदः) उदर उनका मछली के उदर समान अति कोमल था। इन प्रभु के लिये (केसवो-केशव) कृष्णने (राइमइ कण्ण भज जाए?-राजीमती कन्या भायों याचते) इनकी भार्या होने के लिये रोजीमती कन्या की उग्रसेन से याचना की ॥५॥६॥
वह राजीमती कैसी थी सो सूत्रकार उसका वर्णन करते हैं'अहसा' इत्यादि।
अन्वयार्थ-(सा रायवरकण्णा-सा राजवरकन्या) वह राजाओं मे श्रेष्ठ उग्रसेन की कन्या (सुसीला-सुशीला) सुन्दर आचारपाली थी રચના થાય છે તેનું નામ વાઝષભ નારાચ સહનન છે પ્રભુનું સ હનન આ વજ ऋषभ नाराय तु तथा समचउरसो-समचतुरस्त्र सस्थान समयतुर तु झसोयरो-झपोदरः तनु पेट माछीनाटनी म अति आभा तु मा प्रभुना विवाह भाट केसवो-केशवः लो असेन पास राइमइ कण्ण भज्ज जाएइ-राजीमती कन्या याचते तनी शलमती ४न्यानी भागणी ४ ॥ तेसमती वा तीतेनुपा ४२ता सूत्र२४३ छ-"अहसा" त्या !
स-या-सा रायवरकप्पा-सा राजवरकन्या शतमामा ०४ वा असेन imनी अन्या, सुसीला-मुशीला सु१२ मायाराजी इती चारु पेहिणी