Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिा टीरा भ नेमिनाथचरितनिरूपणम्
टीका-'सोऽरिहनेमि नामो' इत्यादि
अरिष्टनेमि नामा म भगवान् लक्षणम्बरमयुत -तत्र लक्षणानि औदार्यगाम्भीर्यानोनित महिनो यार = वनिम्तेन सयुतो-युक्त -माधुर्यादिगुणसपन्न ससान्, तपा-अष्टमघमणधर - अष्टाधिक मामा-अष्टमहमम्, तत्मरव्य. कानि यानि शुभमचानि लक्षणानि-दम्तपादाही म्वस्तिकपमसिंह श्रीवत्स शवचक्रगना वनाधिममुग्वाणि ताकृता चिह्नानि तेपा घर धारक.तीर्थदरतामचक सम्ति सायष्टोत्तरसम्रलक्षणयुक्त.. गौतम' गीतमगोत्रोत्पन्न , कालकवि श्यामरान्ति मुशोभितः, तु-पुनः-वजऋपमनाराचसहनना-पत्र कीटकाकारमम्थि, काम =पट्टाकतिमोऽस्थिविशेष , नाराचम्-उभयतो मर्मट पन्धः, एभिः सहनन-शरीररचना यम्य स तथा, जम्पभनाराचसहननावानि
सूत्रकार भगवान के रूप आदि का वर्णन करते हुए कहते हैं'सोरिह' इत्यादि।
अन्वयार्थ-(अरिष्टनेमि नामो सो-अरिष्टनेमिनामा स) अरिष्ट नेमि नामवाले वे भगवान् (लमग्वणस्मरसजुओ-लक्षणस्वरसयुतः) माधुर्य गाभीर्य आदि लक्षणों से समन्वित म्वर वाले थे। (अहमहस्स लखणधरो-अप्टसहस्रलक्षणधर.) हस्तपाद आदिको मे स्वस्तिक, पभ सिंह, श्रीवत्म, शव, चक्रा, गज, अश्व, छत्र, समुद्र आदि शुभ सूचक एक हजार आठ १००८ लक्षणों को धारण किये हुए थे। (गोयमोगौतमः) गौतमगोत्र में उत्पन्न हुए थे। (काल गज्वी-कालच्छवि:) कान्ति इनकी श्याम थी। (वजरिसहसघयणो-वज्रमपभसहननः) वज्रऋषभनाराच सहनन वाले थे। कीलक के आकारवाली हडिका नाम वन है, पहाकार हट्टी का नाम ऋषम है। उभयत मटयध का नाम नाराच है। इनसे जो शरीर की रचना होती है उसका नाम चज्र
सूत्र भगवानना ३५ नु वएन रता ४ छ, “सोरिट्र"
अन्वयार्थ-अरिहनेमिनामो सो-अरिष्टनेमिनामा सः मरिटनेमि नामवाणा ते लगवान माधुय गालीय सिक्षायुत -१२वाणा ता असहस्सलकसणधरो -अष्टसहस्त्रलक्षणधर डाय ५मा मायिया, वृषभ, सिड, श्रीवत्स, शम, या, ગજ, અશ્વ, છત્ર, સમુદ્ર, વગેરે શુભસૂચક એક હજાર આઠ ૧૦૦૮ લક્ષણોને ધારણ ४२ ता गोयमो-गौतम. गौतम गोत्रमा उत्पन्न धयाना कालगन्छवी-कालक
छवि तेमनी लान्ती श्याम ती बजरिसहसघयणो-वनऋपभसहनन य म , નારાચ, મ હનનવાળા હતા ખીલ આકારના હાડકાનું નામ જ છે પાકાર હ ! કાનું નામ કષભ છે ઉભયત મર્ક ટબ ધનું નામ નાચ છે તેન થી શરીરની જે