Book Title: Prashamrati Prakaranam
Author(s): Rajkumar Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 159
________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [चतुर्दशोऽधिकारः, षड्व्व्याणि भावार्थ-आकाशद्रव्य लोकस्वरूप भी है और अलोकस्वरूप भी है । जीवों और अजीवोंके आधारभूत क्षेत्रको लोक कहते हैं । उससे परे अलोक है । जितने आकाशमें जीव और अजीव वगैरह पाँचों द्रव्य पाये जाते हैं, उसे लोकाकाश कहते हैं और जहाँ जीव आदिका बिलकुल अभाव है, उसे अलोकाकाश कहते हैं । इस प्रकार जीवादिक द्रव्योंके रहने और न रहनेसे आकाशके दो विभाग हो गये हैं । अन्यथा आकाश एक और अखण्ड ही है। मानुषोत्तर पर्वतसे घिरे हुए अढाई द्वीप और दो समुद्रोंको मनुष्यलोक कहते हैं । उतने ही क्षेत्रमें भूत, भविष्यत् और वर्तमान रूप कालका व्यवहार होता है । क्योंकि व्यवहारकाल ज्योतिष्कदेवों के भ्रमणसे होता है और उनका भ्रमण केवल मनुष्यलोकमें ही होता है । बाकीके धर्म, अधर्म, जीव और पुद्गलद्रव्य लोकव्यापी हैं। धर्म और अधर्मद्रव्य समस्त लोकाकाशमें व्याप्त हैं ; सूक्ष्म शरीरवाले जीव भी समस्त लोकमें पाये जाते हैं। परमाणु वगैरह पुद्गलद्रव्य भी सम्पूर्ण लोकमें रहते हैं । एक जीव भी केवलिसमुद्घातके समय सम्पूर्ण लोकाकारों व्याप्त हो जाता है। किमेकं द्रव्यं किं चानेकद्रव्यमित्याहअब इन द्रव्योंमें कौन कौन द्रव्य एक हैं ? और कौन अनेक हैं ! यह बतलाते हैं: धर्माधर्माकाशान्येकैकमतः परं त्रिकमनन्तम् । कालं विनास्तिकाया जीवमृते चाऽप्यकतॄणि ॥ २१४ ॥ टीका-धर्मद्रव्यमधर्मद्रव्यमाकाशद्रव्यं च त्रीण्यप्येकैद्रव्याणि एकमेकं द्रव्यं धर्मः, अधर्माकाशावपि तथैव व्योमद्रव्यं तु लोकालोकस्वरूपमेकमेवेति प्रतिपत्तव्यम् । जीवद्रव्यमनन्तसंख्यम् । तथा पुद्गलद्रव्यं कालद्रव्यमप्यनन्तसमयमतीतानागतादिभेदेनेति । अथायमस्ति कायशब्दः किं सर्वद्रव्यविषयः ? नेत्याह-कालाद्विनाऽस्तिकायाः । कालस्तु नास्तिकायः। न प्रचयोऽस्ति समायानाम् । वर्तमानस्त्वेक एव समयः स नास्तिकायः । अन्यत्र प्रचयोऽस्ति । असंख्येयप्रदेशो जीवः । तथा धर्माधर्मावपि । व्योमानतप्रदेशं पुद्गलद्रव्यं च । जीवाहते द्रव्याणि धर्मादानि कर्तृत्वपर्यायशून्यानि । जीवस्तु कर्ता शुभाशुभानां कर्मणामिति ॥ २१४ ॥ अर्थ-धर्म, अधर्म और आकाश द्रव्य एक एक हैं । बाकीके तीन द्रव्य अनन्त हैं । कालके विना शेष द्रव्य अस्तिकाय हैं और जीवके विना शेष द्रव्य अस्तिकाय हैं और जीवके विना शेष द्रव्य अकर्ता हैं। भावार्थ-धर्मद्रव्य एक है, अधर्म द्रव्य एक है और लोक तथा अलोकरूप आकाश द्रव्य भी एक ही हैं - जीवद्रव्य अनन्त है । पुद्गलद्रव्य अनन्त हैं तथा कालद्रव्य भी अतीत, अनागत वगैरह के भेदसे अनन्त समयवाला है । इन छहों द्रव्योंमेंसे कालके विना शेष पाँचों' द्रव्य अस्तिकाय कहे जाते है । कालद्रव्य अस्तिकाय नहीं है । क्योंकि उसके समयोंका प्रचय नहीं होता। वर्तमानकालका प्रमाण एकसमय है । अतः यह अस्तिकाय नहीं है। किन्तु शेष द्रव्यों के प्रदेशोंका प्रचय होता है; क्योंकि वे बहुप्रदेशी हैं । जीव धर्म और अधर्मद्रव्य असंख्यातप्रदशी है । आकाश

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