Book Title: Prashamrati Prakaranam
Author(s): Rajkumar Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 171
________________ १६२ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [पंचदशोऽधिकारः, चारित्रम् प्रति प्रधान कारण है । अनेक अनुयोगोंसे, अनेक नयोंसे तथा प्रत्यक्ष परोक्ष प्रमाणोंसे इस चारित्रको अच्छी तरह जानना चाहिए ॥ २२८-२२९ ॥ ... सम्यग्दर्शनं सम्यग्ज्ञानं सम्यक्चारित्रं च किं समुदितमेव साधनमाहोश्चिदेकैकमपीत्याशङ्कयाह सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र तीनों मिलकर ही मोक्षके साधन हैं अथवा एक एक साधन है ! यह आशङ्का करते हैं: सम्यक्त्वज्ञानचारित्रसम्पदः साधनानि मोक्षस्य । '. तास्वेकतराऽभावेऽपि मोक्षमार्गोऽप्यसिद्धिकरः ॥ २३० ॥ टीका-समुदितमेव त्रितयमावकलं मोक्षसाधनम् । एकतराऽभावेऽप्यसाधनमिति । एताः सम्यक्त्वादिसम्पदाः । परस्परापेक्षा एव माक्षं साधयन्ति, त्रिफलाव्यपदेशवत् । एकतराऽभावे तु साधनाभावः, न माक्षं साधयन्तीत्यर्थः ॥ २३० ॥ ___ अर्थ-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्ररूपी सम्पदा मोक्षका साधन है। उनमेंसे एकके भी अभावमें मोक्षमार्गकी सिद्धि नहीं होती। ___भावार्थ-ये तीनों मिलकर ही मोक्षके साधन हैं । एकके भी अभावमें मोक्षके साधन नहीं हो सकते । जिस प्रकार हरं, बहेड़ा और आँवलाके मेलसे ही त्रिफला नामक औषध तैयार होती है, तभी वह रोगोंका उन्मूलन करती है। उसी प्रकार ये तीनों ही परस्परमें एक दूसरेकी अपेक्षा रखकर ही मोक्षका साधन करते हैं । इनमेंसे यदि एक भी न हो तो संसाररूपी रोगोंसे मुक्ति नहीं मिल सकती। पूर्वद्वयसम्पद्यपि तेषां भजनीयमुत्तरं भवति । पूर्वद्वयलाभः पुनरुत्तरलाभे भवति सिद्धः ॥ २३१ ।। टीका-सम्यग्दर्शनसम्यग्ज्ञानयोः सतोरपि चारित्रसम्पत् कदाचिद् भवति, कुदाचिन्नेति भजनीयमुत्तरं चारित्रमित्यर्थः । यदा पुनश्चरणं लब्धं तदा पूर्वद्वयलाभो नियमेनैव । नहि सम्यग्दर्शनसम्यग्ज्ञानाभ्यां विना चरणसंभवः, तत्पूर्वकत्वाच्चारित्रस्य । तस्माच्चरणलाभा विनाभूते सम्यक्त्वसम्यग्ज्ञाने ॥ २३१॥ . ___ अर्थ-उनमेंसे पहलेके दो-सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानके होनेपर भी चारित्र भजनीय है--कभी होता है और कभी नहीं होता। किन्तु उत्तर-चारित्रके होनेपर पहलेक दोनों-सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानका लाभ सिद्ध ही है। .. १-त्रिफलव्य-फ. ब०। २-'सम्यग्दर्शनसम्यग्ज्ञानयोः' इत्यारभ्य 'नियमेनैव' इतिपर्यन्तः पाठः-फ० पुस्तके नास्ति । परन्तु 'सम्यक्त्वज्ञानचारित्रसम्पदः' इत्यादिपूर्वकारिकाव्याख्यानन्तरमवश्यमुलिखितोऽयं त्रुटितः पाठस्तत्र |

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