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जैन सिद्धान्त दीपिका
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४८. हिंसा, असत्य, चोरी और विपय-भोगों की रक्षा के निमित्त होने
वाली एकाग्रचिन्ता गैद्रध्यान है।
४६. शरीर और कषाय आदि का विसर्जन करने को व्युत्सर्ग कहा जाता है।
शरीर, गण, उपधि (वस्त्र-पात्र) और भक्तपान का विसर्जन करना द्रव्य व्युत्सर्ग है।
कषाय, संसार और कर्म का विमर्जन करना भाव व्युत्सर्ग
इति मोक्षमार्गनिर्णय