Book Title: Jain Siddhant Dipika
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 219
________________ १९२ जैन सिद्धान्त दीपिका वर्ग से उसका प्रेम-बन्धन नहीं टूटता। इसलिए वह भिक्षा के लिए केवल जातिजनों में ही जाता है । अगली प्रतिमा में पहली प्रतिमा का त्याग यथावत् (चालू) रहता है। १०. समुद्घान् के सात प्रकार...७/३० आत्म-प्रदेश सात अवस्थाओं में शरीर से बाहर निकलते हैं : १. वेदना समुद्घात–तीव्र वेदना के समय । २. कषाय समुद्घात–तीव कषाय के समय । ३. मारणान्तिक समुद्घात-मृत्यु के निकट काल में मरणासन्न दशा में आत्म-प्रदेश भावी जन्मस्थान तक चले जाते हैं। ४. वैक्रियसमुद्घात-विक्रिया के समय शरीर के कई या कई तरह के रूप बनाने के समय । ५. आहारक समुद्घात-सन्देह-निवृत्ति के लिए योगी अपने शरीर से एक दिव्य पुतला बनाकर सर्वन के पास भेजते हैं,उस समय। तेजससमुद्घात-निग्रह या अनुग्रह के लिए योगी तेजोमय शरीर का प्रयोग करते हैं, उस समय । ७. केवल समुद्घात केवल ज्ञानी के वेदनीय कर्म अधिक हो, आयुप्य कर्म कम, तब दोनों को समान करने के लिए स्वभावतः आत्म-प्रदेश समूचे लोक में फैलते हैं, उस समय ।

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