Book Title: Jain Siddhant Dipika
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 228
________________ जैन सिद्धान्त दीपिका २०१ व्यवहार - स्थूल दृष्टि । शरीर- उत्सर्ग - शरीर को स्थिर करना । संघ - गण का समुदाय — दो से अधिक आचायों के शिष्य-समूह | संज्वलन – सूक्ष्म कषाय - क्रोध, मान, माया, लोभ - वीतरागदशा को रोकने वाला कर्म । मं पराय सातावेदनीय – कषाययुक्त आत्मा का सातवेदनीय कर्म । संमूमि - गर्भ के बिना उत्पन्न होनेवाले प्राणी । सागर - जिसका काल-मान दस कोड़ाकोड़ पल्य हो, वह सागर है । सामायिक - एक मुहूतं तक पापकारी प्रवृत्तियों का त्याग करना । 000

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