________________
४४
किया है * । इसीसे पापोंकी निवृत्तिपूर्वक इष्ट सिद्धिके लिये लोग जिनदेवका पूजन करते है । फिर पापाचरणीयोके लिये उसका निषेध कैसे हो सकता है ? उनके लिये तो ऐसी अवस्थामे, पूजनकी और भी अधिक आवश्यकता प्रतीत होती है । पूजासार प्रथमे माफ ही लिखा है कि “ब्रह्मनोऽथवा गोमो वा तस्करः सर्वपापकृत् । जिनाङ्घ्रिगंधसम्पर्कान्मुक्तो भवति तत्क्षणम् ॥”
44.
अर्थात् — जो ब्रह्महत्या या गोहत्या कियेहुए हो, दूसरोका माल चुरानेवाला चोर हो अथवा इससे भी अधिक सम्पूर्ण पापोका करनेवाला भी क्यों न हो, वह भी जिनेद्र भगवान के चरणोंका, भक्तिभावपूर्वक, चदनादि सुगध द्रव्योसे पूजन करनेपर तत्क्षण उन पापोसे छुटकारा पानेमे समर्थ होजाता है । इससे साफ तौर पर प्रगट है कि पापीसे पापी और कलकी से कलंकी मनुष्य भी श्रीजिनेद्रदेवका पूजन कर सकता है और भक्ति भावसे जिनदेवका पूजन करके अपने आत्मावे कल्याणकी ओर अग्रसर हो सकता है । इस लिये जिस प्रकार भी बन सके सबको नित्यपूजन करना चाहिये। सभी नित्यपूजनके अधिकारी है और इसी लिये ऊपर यह कहा गया था कि इस नित्यपूजनपर मनुष्य निर्यच, स्त्री, पुरुष, नीच, रच, धनी, निर्धनी, बनी, अवती, राजा महाराजा, चक्रवर्ती और देवता सबका समानाऽधिकार है । समानाधिकारसे, यहा, कोई यह अर्थ न समझ लेवे कि सब एकसाथ मिलकर एक थाली में, एक मंडली या चौकीपर अथवा एक ही स्थानपर पूजनकरनेके अधिकारी है किन्तु इसका अर्थ केवल यह है कि सभी पूजनके अधिकारी है । वे, एक रसोई या भिभिन्न रसोईयो से भोजन करनेके समान, आगे पीछे, बाहर भीतर, अलग और शामिल, जैसा अवसर हो और जैसी उनकी योग्यता उनको इजाजत आज्ञा ) ढे, पूजन कर सकते है ।
华
जिनपूजा कृता हन्ति पाप नानाभवोद्भवम् ।
बहुकालचित काष्टराशि वहिमिवाखिलम् ॥ ९-१०३॥
- वर्ममग्रहश्रावकाचार |
---