Book Title: Anitya Bhavna
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 149
________________ (१४) करता है, उस समय कर्म आस्रव से रहित हो जाता है । यही आस्रव भावना का सार है। ८ संवर भावना। सम्पूर्ण आस्रवों के निरोध को सवर कहते है । अर्थात् जिन २ द्वारों से कर्मों का आस्रव होता है, उनको रोक देनेसे नवीन कर्म नहीं बँधते है । यही सवर है । जहाज मे जिन २ छिद्रो से पानी आता है, उनको बन्द कर देनेसे जैसे नया पानी आना बन्द हो जाता है उसी प्रकारसे आस्रव के द्वारो को रोक देनेसे सवर होता है अर्थात् नवीन कर्मों का आना रुक जाता है। ___ सवर के दो भेद है.- १ द्रव्यसवर और २ रा भावसंवर । कर्मरूपी पुद्गल परमाणुओं का ग्रहण न करना, रोक देना, यह तो द्रव्यसंवर है और जिन क्रियाओं के करने से कर्म ग्रहण होता है उन क्रियाओंका ही अभाव करना यह भावसवर है । भावसंवर कारण है और द्रव्यसवर कार्य है। जिन कारणों से कर्म बंधते हैं, उन कारणो का दूर करना और रोकना उचित है । क्रोध के रोकने के लिये क्षमा का होना अवश्य है । मान या अभिमान के लिये मार्दव अर्थात् मृदुता, माया के लिये आर्जव अर्थात् ऋजुता-सरलता, लोभ के लिये संगसन्यास, रागद्वेष के लिये समताभाव या निर्मलताभाव, मिथ्यात्व के लिये सम्यक्त्व अर्थात् सच्चे देव गुरु और शास्त्रों में श्रद्धान, अज्ञानरूपी अन्धकार को दूर करने के लिये हृदयमें ज्ञान का प्रकाश और असंयमरूपी विष का प्रभाव नष्ट करने के लिये सत्संयमरूपी अमृत अवश्य है जो मनुष्य बुद्धि

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