Book Title: Anitya Bhavna
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 102
________________ - _घोर भाइयो, हमको अपनी इस हालतपर बहुत से लाजिल और शोकित होना चाहिये । हमारी इस लापरवाही (उदासीनता)। और सामोशी (मौनवृत्ति)स जैनजातिको बडा मारी धब्बालग रहा है। हमने अपने पूज्य पुरुषोऋषिमुनियोंके नामकोबहालगा रखा (है। यह सब हमारी स्वार्थपरता, निष्पौरुषता, संकीर्ण दृश्यता और 7 विपरीतबुद्धिका कारण है। इसका सारा कलंक हमारेही आर है। वास्तवमे हम बड़ेभारा अपराधी हैं। जब हम अपनी मांगों के सामने इस बातको देखरहे हैं कि अज्ञान से अन्धे प्राणी विल्कुल सुधाए। मिथ्यात्वरूपी के सम्मुख जारह हैं और उसमे गिररहे हैं और फिर भी हम मौनालम्बी हुए चुप चाप बैठे हैं-उन चारों को उस कुएसे सूचित करते हैं, न कुएम गिरने से बचाते हैं औरन कुपों (गिरहओं को निकालनेका प्रयत्न करते हैं, तो इससे अधिक औरक्या अपराध हो सकता है ? अब हमको इस कलक भोर अपराध से मुक्त होनेके लिये अवश्य प्रयत्नशील होना चाहिये । सबसे प्रथम हमको अपने में स इन स्वार्थपरताआदिक दोषाको निकाल डालना चाहिये फिर उत्साहकी कटि बांधकर भौर परोपकारको ही अपना मुख्यधर्म। संकल्प करके अपन पूज्य पुरुषों और ऋषिमुनियों के मार्गका । अनुसरण करना चाहिये और दूसरे जीबीपर दयाकर उनको मिथ्या वरूपी अन्धकारसे निकालकर जिनवाणीके प्रकाशरूप जैनधर्मकी। शिरणमें लाना चाहिये । यही हमारा इस समय मुख्य कर्तव्य है और इसी कर्तव्यको पूरा करनेस हम उपर्युक्त कलकसे विमुक्त होसकते। हैं और अपने मस्तकपर जो कालिमाका टीका लगा हुआ है उसको । दूर कर सकते हैं। हमको चाहिये कि अपने इस कर्तव्यके पालन करने में अब कुछ मी विलम्ब न करें । क्योंकि इस वक्त कालका गति जोनयाके अनुकूल है । अब वह समय नहीं रहा कि ।

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