Book Title: Anitya Bhavna
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 145
________________ ( १० ) इसका अर्थ यह है, - जैसे ऊची २ लहरे उठती है और झटपट नष्ट हो जाती है इसी प्रकार भोग विलास भी चञ्चल है, प्राण क्षणमात्र मे नष्ट हो जाते है, यह जोबन भी दिन चार का है, प्यारों में प्रीति भी चिरकाल तक नही रहती, यह सारा ससार ही असार और तुच्छ है । ये सब बाते जानकर हे ज्ञानी पुरुषो ! चेत करो और ऐसा यत्न करो जिस से तुम अपने मनसे लोगों की भलाई की बाते सोचो और उन को उपकार पहुचाने मे सदा उद्यत रहो । I ४ एकत्व भावना । सचमुच अनन्तज्ञानस्वरूप आत्मा एक ही है और ससार मे जो अनेक अवस्थाए होती है वे सब कर्मों के अनुमार हैं । परन्तु इन सब अवस्थाओ मे भी आत्मा अकेला ही है, वही जन्मता है। वही मरता है, दूसरा उस के साथ मे न मरता है न जन्मता है, शरीर यही का यही रह जाता है । अर्थात् आत्मा अकेला ही शरीर मे आता है और अकेला ही उसे छोड़कर चला जाता है, उस का दूसरा संगी कोई नहीं, वही अकेला सुख भोगता है या दुःख सहता है । मनुष्य अपने कुनबे के लिए झूठ सच बोल कर धन इकट्ठा करता है और इतर अनेक प्रकार के काम करता है, उस धन के भोगने मे कुनबे के लोग संगी हो जाते है पर इन कर्मों का फल उस मनुष्य को आप ही भोगना पड़ता है । जब देही का देह के साथ या आत्मा का शरीर के साथ भी सम्बन्ध नही है, तो दूसरों के साथ कहा हो सक्ता है ? इस कारण

Loading...

Page Navigation
1 ... 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155