Book Title: Anitya Bhavna
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 103
________________ मासम्म ... -. --- -- - -- -- - - --- -- - जब मन्यायी और निदुर राजा बा बादशाहों के अन्यान्य और अत्याचारो के कारण जैनी अपनको जैनी कहते हुए डरते थे और अपने धर्म व शाओंका छिपाने क लिय बाध्य होते थे । अब वह समय। (भागया है कि लोगो की प्रवृत्ति सत्य नाकी खोज और निष्पक्ष पालताकी भार हाती जाती ह । इसलिय जैनियो लिय यह समय) 1बड़ा ही अमूल्यहै । ऐसे अवसरपर हमको अवश्य अपन धर्मरत्नका - प्रकाश सर्व साधारण में फैलाना चाहिये । सर्ष मनुष्योपर जैनधर्मके सिद्धान्त और उनका महत्त्व प्रकट करना चाहिये और उनको बतलाना चाहिये कि, जैनधर्म ही क्यो जीवाका कल्याण कर सकता है। और उनको वास्तविक सुखकी प्राप्ति करा सकता है। इस समय हमारे माइयांकी केवल थोडीती हिम्मत और परोपकारबुद्धिको जरूरत है । बाकी यह खूबी खुद जैनधर्ममें मौजूद है कि, वह दूसरोको अपनी भोर आकर्षित कर लेने। परन्तु दूसरोंको) इस धर्मसे परिचय और जानकारी कगना मुख्य है और यह जैनि। (योका कर्तव्य है । इसलिये प्यारे जैनियो , आप कुछ भी न घबरा कर इस धर्मरत्नको हाथमे लकर चौडे मैदान में खडे हा जाइये और जौहरियोसे पुकार कर कहिये कि, षे आकर इम रत्नकी परीक्षा करे। फिर आप देखेंगे कि, कितने धर्म-जौहरी इस धर्मरत्नको देखकर मोहित होते हैं और इसपर अपना जीवन अर्पण करनेके लिये उद्यमी हाते हैं। अभी हालमे कुछ लोगोंके कानोतक इस धर्मका शुभ समाचार पहुंचा हीथा कि वे तुरन्त मन बचन कायसे, इसके अनुयायी और भक्त बन गये है। इसलिये मेरा बार २ यही कहना है कि, कोई भी मनुष्य इस पवित्र धर्मस अवचित न रक्खाजावे किसी न किसी प्रकारसे प्रत्येक मनुष्य के कानों तक इस धर्मकी भाषाज़ (पुकार ) जकर पहुंच जानी -- - - - - --

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