Book Title: Anitya Bhavna
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 141
________________ (६) १ अनित्य भावना। इस ससार में जितने पदार्थ है सब में तीन गुण है अर्थात् उत्पन्न होना नाश होना और उपस्थित रहना । इन तीनों गुणों का नाम जिनमत में 'उत्पादव्ययध्रौव्यत्व' है । जैसे सोने का कड़ा है । उसको तोडकर कुडल बनाया । ऐसा करने से कड़े का नाश हुआ, कुंडलका उत्पाद हुआ और सोना दोनो अवस्थाओं में ध्रुव रहा अर्थात् उपस्थित रहा । साराश यह है कि ये पदार्थ वा द्रव्य अपने २ रूप मे तो सदा स्थिर वा नित्य है परन्तु इनकी दशाये सदा बदलती रहती है और इसी लिए अनित्य है । यथा शरीर पीडा और दुःखों का भण्डार है, यौवन का परिणाम बुढापा है, सुन्दर आकृति कुरूप आकृति में बदल जाती है, धन दौलत नाश को प्राप्त हो जाती है और इस जीवन का अन्त मृत्यु है । सकल सासारिक वस्तुओं को विचार कर देखने से यह प्रतीत होता है कि किसी वस्तु को भी स्थिरता नहीं है । यथा आज प्रात काल जिस घर मे मगल गायन हो रहा था और धूमधाम से बाजे बज रहे थे, वहीं सायंकाल को रोना पीटना हो रहा है और हाय ! हाय ' का शब्द निकल रहा है, जिस देश मे कल एक मनुष्य को राजतिलक दिया गया था, आज म उसी मनुष्य के शव को चिता मे रखकर फूक रहे है । अत एव जो लोग बुद्धिमान् है वे इस संसार के अनित्यत्व को भले प्रकार समझ कर इस में लीन नहीं होते है, और अपने नित्य अर्थात् अविनाशी आत्माका कल्याण करने में तत्पर रहते है, गृह्वासको एक अचिरस्थायी और विनाशी पथिकाश्चम की नाई समझ कर निरन्तर

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