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सकाम निर्जरा से यह तात्पर्य है कि ऋषि मुनि अपनी इच्छा से तपके द्वारा पहले ही कर्मों का नाश कर देते है अर्थात् जो कर्म उनके साथ बंधे हुए है और जिनका आविर्भाव या उदय कुछ काल पीछे होना है सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र सहित तप करने से उन कर्मों का पहले ही नाश कर देते है । और अकाम निर्जरा से यह अभिप्रेत है कि कमों की अवधि पूरी होने पर अपने २ समय पर आप उन कर्मों का नाश हो जाता है । इन का उदाहरण वृक्षों के फलों के समान है । एक तो यह कि हम फलो को पाल आदि मे दबाकर पका लेते है दूसरे यह कि फल वृक्ष पर पककर आप ही आप झड जाते है ----
तप दो प्रकार के है-(१) बाह्य तप और (२) आभ्यन्तर तप ( देखो धर्म भावना )।
नोट-सातवी आठवी और नवमी भावनाओं का सक्षिप्त भावार्थ-आस्रव भावना में योगोंके द्वारा कर्मों का आगमन होता रहता है, सम्बर भावना मे हम क्षमा धृति आदि गुणों को धारण करके अपने में नए कर्म नही बाधते-खोटे कर्मों को रोक देते हैं
और निर्जरा भावना मे पूर्ण तप करके और इन्द्रियों को सर्वथा दमन करके पिछले बुरे कर्मों का भी नाश कर सक्ते है।
१० धर्म भावना।
धर्म की महिमा और उसके गुण । धर्मरूपी कल्पवृक्ष ऐसा है कि दया इस का मूल है और