Book Title: Anitya Bhavna
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 139
________________ श्रीवीतरागाय नमः। बारह भावनाओंका संक्षेप। ज्ञानार्णव । 'ज्ञानार्णव' एक जैन ग्रन्थ है । इस का अर्थ ज्ञान का समुद्र है । इस के बनानेवाले श्रीशुभचन्द्राचार्य है । प्रथम के १९ श्लोको मे मङ्गलाचरण, सज्जनों की प्रशसा और दुर्जनो की निन्दा, पिछले बड़े कवियो और अन्य ग्रन्थ रचिताओ की अपेक्षा अपनी लघुता, अपने इस ग्रन्थ के रचने का प्रयोजन वर्णन करके सामान्यतः आत्मा की शुद्धि का उपाय बताया है। अर्थात् प्रत्येक पुरुष को चाहिये कि, दिनरात और आयु पर्यन्त इस संसार के झगडों में न फंसा रहे वरच परमात्मा का ध्यान करके अपने मन और हृदय को शुद्ध करे, काम क्रोध लोभ मोह और अहंकार की अति से बचे, छल धोखा हिसा आदि को छोड़ दे धार्मिक और पवित्र जीवन व्यतीत करे और इस प्रकार परम आनन्द लाभ करे । इस के आगे १२ भावनाओं का वर्णन है [१] अनित्य भावना [२] अशरण भावना [३] ससार भावना [४] एकत्व भावना[५] अन्यत्व भावना [६] अशुचित्व भावना [७] आस्रव भावना [ ८ ] सम्वर भावना [९] निर्जरा भावना [१०] धर्म भावना [११] लोक भावना [ १२ ] बोधिदुर्लभ भावना ।

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