Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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विषय
पृष्ठा ३० मायारहित भगवान् स्वयमेव संसारका स्वरूप जानकर स्वयं
संबुद्ध हो तीर्थप्रवर्तन के लिये उद्यत हुए। भगवान् कर्मों के क्षयोपशम, उपशम और क्षय से समुद्भूत आत्मशोधि द्वारा मनोवाक्काययोग को स्थिर रख कर, कषायाग्नि के प्रशमन से शीतीभूत होकर यावज्जीव पाच समिति और तीन गुप्ति से युक्त रहे।
६१४-६१६ सत्रहवीं गाथा का अवतरण, गाथा और छाया। भगवानने इस प्रकार के आचार का वारंवार पालन किया। भगवानने यह आचार इसलिये पाला कि दूसरे भी साघु मेरे देखादेखी इसी प्रकार से आचार का पालन करें। उद्देश समाप्ति।
६१६ ३३ नवम अध्ययन का उपसंहार और शास्त्रप्रशस्ति । ६१७-६१९
॥ इति विषयानुक्रमणिका सम्पूर्ण ॥
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श्री. मायाग सूत्र : 3