Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारागसूत्रे संशयवतः संसारः परिज्ञातो भवति, तत्परिज्ञानाच्च सर्वविरतिरिति तां निर्देष्टुमाह-'जे छेए' इत्यादि ।
मूलम्-जे छेए से सागारियं न सेवइ, कटु एवमवियाणओ बिइया मंदस्स बालया; लद्धा हुरत्था पडिलेहाए आगमित्ता आणविज्जा आणासेवणयाए-त्तिबेमि ॥ सू० ४॥
छाया-यश्छेकः स सागारिकं न सेवते, कृत्वा एवमविजानतो द्वितीया मन्दस्य बालता, लब्धानप्यर्थान् प्रत्युपेक्ष्याऽऽगम्याऽऽज्ञापयेदनासेवनतयेति ब्रवीमि ॥ सू० ४॥ सन्देह होता है तो वह उस सन्देहसे उसका निर्णय कर वहां से निवृत्त होता है, इस लिये विशिष्ट ज्ञानके अभावमें संशय से भी जीवकी जब पदार्थ के निर्णय करने की ओर प्रवृत्ति होती है तो इस प्रकारसे अन्योन्याश्रय दोष नहीं आता है; क्यों कि मोहके कारणभूत संसारादिक पदार्थों में 'ये सुखदायी हैं अथवा नहीं?' इस प्रकार के सन्देह के निर्णयार्थ उनमें प्रवृत्तिशील पुरुष के सन्देह दूर होते ही विरागपरिणति हो जायगी। इस परिणतिका नाम ही मोहका अभाव है, अतः सूत्रकार का यह कथन कि 'संशय को नहीं जाननेवाले के लिये संसार अपरिज्ञात है और उसे जाननेवाले के लिये वह परिज्ञात है' ठीक ही है । सू०३॥ ___ संशयज्ञानवाले को संसार परिज्ञात होता है और उसके परिज्ञात होने पर उसे सर्वविरति का लाभ होता है, अतः उस विरति को सूत्रकार कहते हैं-'जे छेए' इत्यादि। પ્રકારે જયારે મેક્ષાથી જીવને તેમાં સંદેહ થાય છે તે તે એ સંદેહથી તેને નિર્ણય કરી ત્યાંથી નિવૃત્ત થાય છે. આ કારણે વિશિષ્ટ જ્ઞાનના અભાવમાં સંશયથી ५५ च्यारे पानी निणय ४२वा त२६ वनी प्रवृत्ति थाय छ त्यारे 'अन्योन्याश्रय' होप पावतो नथी. ४२१ भाडना ४२७भूत संसाराहि पहा मां
એ સુખદાયી છે કે નહિ ? એવા પ્રકારના નિર્ણય માટે તેનામાં પ્રવૃત્તિશીલ પુરૂષને સંદેહ દુર થતાં જ વિરાગ-પરિણતિ થઈ જશે, આ પરિણતિનું નામ જ મેહને અભાવ છે, માટે સૂત્રકારનું આ કથન કે “સંશયને નહિ જાણનારા માટે સંસાર અપરિજ્ઞાત છે અને તેને જાણવાવાળા માટે તે પરિજ્ઞાત છે ઠીક જ છે. સૂ. ૩
સંશયજ્ઞાનવાળાને સંસાર પરિજ્ઞાત થાય છે અને સંસાર પરિજ્ઞાત થવાથી तेरे सव२तिन दास थाय छ, भाटे मे वितिने सूत्र।२४ छ.-'जेछेए' त्याहि.
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩