Book Title: Yog Granth Vyakhya Sangraha
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Suri Ramchandra Shatabdi Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 62
________________ दीक्षा (सामान्यबीजा.)] / नाम . व्याख्या गाथा 1/148 28/1 12/2 20 दीक्षा (सामान्यबीजा.) = द्रव्यसम्यक्त्वादिक्रमेणासद्ग्रहपरित्यागधार्मिकजनानुराग विहितानुष्ठानाहितक्षयोपशमज्ञानावरणविगमबोधिवृद्ध्यादि गुणप्राप्तिपूर्वं परमदीक्षाप्राप्तिहेतुरूपा / गु. दीक्षा = दीक्षा हि श्रेयसो दानादशिवक्षपणात्तथा / सा ज्ञानिनो नियोगेन ज्ञानिनिश्रावतोऽथवा // 1 // द्वा. = श्रेयोदानाद्-अशिवक्षपणाच्च सतां दीक्षा मता / षो. = सर्वसत्त्वाभयप्रदानेन भावसत्रम् / पं.व. दीक्षादातागुरुः = प्रव्रज्यार्हगुणविधिप्रव्रजितो गुरुकुलाश्रितो नित्यम् / अक्षतशीलः शान्तः तत्त्वज्ञोऽवगतसूत्रार्थः // 18 // प्रवचनवात्सल्ययुतः सत्त्वहितरतोऽनुवर्त्तको धीरः / गुर्वनुमतपदनिष्ठो धर्मकथाकृज्जनादेयः // 19 // अविषादी परलोके स्थिरहस्तोपकरणोपशमलब्धिः / कलिदोषान्मूलगुणैरेकादिगुणोज्झितोऽपि गुरुः // 20 // मार्ग. दीक्षायोग्यः उत्पन्नमार्यदेशे जातिकुलविशुद्धमल्पकर्मणाम् / कृषतरकषायहासं कृतज्ञमविरूद्धकार्यकरम् // 22 // मरणनिमित्तं जन्म श्रीश्चपला दुर्लभं च मनुजत्वम् / न परनिमित्तं निजसुखमिति चिन्तोत्पन्नवैराग्यम् // 23 // कालपरिहाणिदोषानिर्दिष्टैकादिगुणविहीनमपि / बहुगुणयुतमाचार्या दीक्षायोग्यं जनं ब्रुवते // 24 // मार्ग. दीक्षारागः .. = श्रद्धा-विघ्नाभाव-चित्तदायरूपम् / पं. दीक्षितः = परार्थोद्यतः / अ. दीक्षोचितः = शेषगुणवैकल्येऽपि संसारविरक्त एवात्राधिकारी / षो. = क्षीणविभवत्वादैन्यं प्राप्ताः / पं. = सदैवाकल्याणदर्शी / यो.दृ. = सदैवादृष्टकल्याणः / द्वा. = सदैवादृष्टकल्याणः / यो.बि. = अल्पसत्त्वः / पं.व. = क्षीणसकलपुरुषार्थशक्तयः / यो.बि. दीप्रादृष्टिः = प्राणायामवती दीप्रा, न योगोत्थानवत्यलम् / तत्त्वश्रवणसंयुक्ता, सूक्ष्मबोधविवर्जिता // 57 // यो.दृ. 2/7 28/4 12/5 9/6 दीन: 76 10/5 87 218

Loading...

Page Navigation
1 ... 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150