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( १०४ ) सप्तमे खेचराः सौम्या लक्ष्मीक्षेमविधायिनः । लग्नचक्रं नरं कृत्वा सर्व घातादि चिन्तयेत् ॥ ५५५॥ मूर्ती करग्रहः श्रेयान् श्रेयसी क्रूरडग् नहि । शुभो न शोभनो भू! शुभदृष्टिस्तु शोभना ।। ५५६ ।। शनेोते त्वचं मांस रोमाणि च वपुष्मताम् । भौमवाते च रक्तौघं विधातेऽस्थिभंजनम् ॥ ५५७ ॥ राहुघातेऽपि ससापि नश्यन्ति धातवः समम् । सौम्यग्र हैन घातोऽस्ति जीव्यते प्रत्युत स्वयम् ॥ ५५८ ॥ पूर्णिमाचक्रतो ज्ञात्वा वर्ग चक्राच्च सद्धलम् । वर्णानां भेदतश्चापि ततो युद्धं समाचरेत् ॥ ५५९ ॥ घूने नाथनगे' चन्द्रे लग्नं याते दिवाकरे । विषययो भवेत्तस्य त्रासभंगवधानि च ॥ ५६० ॥
यदि युद्ध प्रश्न में सप्तम में सबल शुभग्रह हों तो धन के लिये कल्याण होता है, लन चक्र को नर मे स्थापित करके सब धातादि का विचार करें ॥५५५||
लग्न में यदि पाप ग्रह हों तो श्रेष्ठ है किन्तु पाप ग्रह की दृष्टि श्रेष्ठ नहीं होती है और लग्न में शुभ ग्रह श्रेष्ठ नहीं हैं किन्तु शुभ ग्रह की दृष्टि अच्छी होता हे ।।५५६।।
यदि शनि का पात हो अर्थात दृष्टि हो तो शरीरधारी की त्वचा, मांस, रोम का घात होता है। मंगल की दृष्टि हो तो रक्त समूह का घात होता है और रवि का हो तो हड़ी की नाश होता है ।।५५७।।
और राहु का घात होने से साथ ही सातों धातुओं का नाश होता है और शुभ ग्रहों से घात नहीं होता है प्रत्युत तत्तद्वस्तु स्वयं जीवित हो जाते हैं ।।५५८॥
पूर्णिमा चक्र से तथा वर्ग चक्र से ग्रहों का बलाबल जान कर, और क्यों के भेद से भी सब जानकर युद्ध का प्रारम्भ करें ॥५६॥
यदि सप्तम या अष्टम भाव में चन्द्रमा हो और लग्न में सूर्य हो तो विपरीत फल होता है तथा उतको त्रास, भंग, वध होता है ॥५६॥
1 निधनगे for नाथनगे A, A1, Bh, 2. नाश for त्रास A,