Book Title: Trailokya Prakash
Author(s): Hemprabhsuri
Publisher: Indian House

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Page 244
________________ दिने रात्रिविभागे च यदाप्राणि भवन्ति चेत् । तत्र काले ध्रुवं वृष्टिभुक्तनाडीप्रमाणतः ॥ १०४१ ॥ येषु मासेषु ये दग्धा गर्भाः पौषादिसम्भवाः । तद्रात्रौ पञ्चनाडीषु चन्द्रो भवति निर्मलः ॥ १०४२ ॥ दग्धा गर्माश्च ये पूर्वमुत्पातैः शीतकालजैः । आषाढीमध्यतस्तेन चन्द्रमास्तत्र निर्मलः ॥१०४३।। पौषादिसम्भवे गर्भे ध्रुवमुत्पातसम्भवः । तेनाषाढीदिनं सर्व द्रष्टव्यं वृष्टिहेतवे ॥ १०४४।। यथाषाढीदिनं रात्रिरर्वातैश्च पूरितम् । तदा गर्भाःशुभा ज्ञेयाः शीतकालेऽपि धीमता ॥१०४५।। एकमेव दिनं प्रेक्ष्यं कालनिष्पत्तिहेतवे । अष्टयामाभ्रवातौ चेद्वष यावत्तदा शुभम् ॥१०४६॥ दिन या रात्रि में जिम घटीविभाग में मेघ हो, भुक्तघटी के प्रमाण से उस मास में अवश्य वर्षा होती है ।। १०४१॥ जिन मासों का पौष आदि मासों में गर्भ नष्ट हो गया हो उस रात्रि में उन मासों के पांच घटीविभाग में चन्द्रमा निर्मल दिखाई देते हैं ॥ १०४२ ॥ पहले शीत काल में जिस मास का गर्भ नष्ट हो गया हो, भाषाढ़ी पूर्णिमा में उस मास के घटीविभाग में चन्द्रमा निर्मल दिखाई देते है। १०४३।। पौष श्रादि मासों में गर्भ सम्भव में अवश्य अपात का सम्भव होता है, इसलिये आषाढी पूर्णिमा में सम्पूर्ण दिन वर्षा के लिये देखना चाहिये ॥ १०४४ ॥ जैसे आषाढी पूर्णिमा के सम्पूर्ण दिन रात्रि मेघ तथा वायु से युक्त हो तो शीत काल में भी गर्भ शुभ आने ॥ १०४५ ॥ काल निष्पत्ति के लिये एक ही दिन देखना चाहिये, यदि माठों प्रहर में मेष तथा वायु हो तो वर्षपर्यन्त शुभ होता है ।। १०४६ ।।

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