Book Title: Trailokya Prakash
Author(s): Hemprabhsuri
Publisher: Indian House

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Page 232
________________ (१८१) सङ्क्रान्तिधिष्ण्याचदि षष्टसंख्ये जायेत धिष्ण्ये रविसंक्रमोऽपि तदापि दौस्थ्यं नृपविध्वरश्व त्रिभागतुच्छा भवति हि पृथ्वी९७५ तुर्ये धिष्ण्ये च पूर्वस्माद्यदि वारे तृतीयके ॥ संक्रमो यदि सूर्यस्य सुभिक्षं स्थात्तदोत्तमम् ॥ ९७६ ।। सूर्यस्यान्यग्रहाणां वा गुरुभऽभ्युदयास्तमौ । शशिदृष्टौ मुभिक्षं स्याइभिक्षं लघुभं पुनः ॥ ९७७ ।। तिथिदिनोडुलग्नानामाघकण्टे रविस्थतौ । सुभिक्षं जायतेऽवश्यं दुभिक्षं तु त्रिकण्टके ।। ९७८ ॥ मित्रस्वगृहतुंगस्थः शुभदृष्टियुतो रविः । पूर्णचन्द्र महाधिष्ण्ये पूर्वसङ्क्रान्ति तुर्यके ।। ९७९ ॥ तृतीयवारसम्बद्धः सुभिक्षः क्षेमदः स्मृतः । सुप्तोऽरिभिर्युतो दृष्टो विद्धः करस्तु नीचगः ।९८०॥ बुध के संक्रान्ति नक्षत्र से छट नक्षत्र में यदि रवि की भी संक्रान्ति हा ता भी लोगों की दुःस्थिति होती है. तथा राजाओं के विग्रह से त्रिभाग शून्य पृथ्वी हो जाती है । ६७५॥ उस संक्रान्ति में चतुर्थ नक्षत्र में मंगल दिन यदि सूर्य की संक्रान्ति हो तो उत्तम रूप से सुभिक्ष हाता: ॥६७६॥ सूर्य का या अन्य ग्रहों का गुरुनक्षत्र में उदय, वा अस्त हो उस पर चन्द्रमा की दृष्टि हो तो सुभिक्ष होता है, और लघुसंज्ञक नक्षत्र में उदयास्त हो तो दुर्भिक्ष होता है ।।६७७|| . तिथि, दिन, नक्षत्र राशि, इनके प्रथम कण्टक रवि स्थित हों तो अवश्य ही सुभिक्ष होता , और त्रिकण्टक में हो तो दुभिक्ष होता है । मित्र स्वगृह, उच्च, आदि में स्थित सूय शुभ ग्रहों की दृष्टि से युक्त हो और पूर्ण चन्द्रमा पूर्व के संक्रान्ति से चतुर्थ नक्षत्र बृहत संज्ञक में हो और मंगलवार भी होता, सुभिक्ष, और कल्याण करता है, और वही सूर्य शत्रु ग्रहों से युक्त हो, नथा पापग्रहों से विद्ध होकर 1. धिष्ण्यं for धिष्ण्याद् Bh. 2. निशि for यदि Bh. 3. गौ for oगौ Bh.

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