Book Title: Trailokya Prakash
Author(s): Hemprabhsuri
Publisher: Indian House

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Page 249
________________ ( १६८ ) वर्षाकाले परीवेषः सूर्येन्दोश्चेद् यदा भवेत् । चतुर्दिवसमध्ये च देवो वर्षति भूतले ।। १०७० || ऐन्द्रं धनुर्यदोदेति प्रभाते पश्चिमाश्रितम् । तहिने पञ्चमे यामे घनः प्लावयति महीम् ||१०७१ || यत्र राशौ भवेत्पर्व तस्या वाच्यं क्रयाणकम् । 2 अत्य लम्क्ते मूल्यं पीड्यमानं च राहुणा || १०७२ || यत्र राशौ कुजो याति चक्रं तत्र सुनिश्चितम् । तद्वाच्यानि क्रयाणानि महर्षाणि भवन्ति हि ॥ १०७३॥ मकरे मङ्गले सौख्यं ततः कुम्भे च पञ्चके । यदा गच्छेत्तदा दौस्थ्यं तुलायामपि मंगलः ॥ १०७४ | पञ्चवर्ष परीवेषो वारुणे मण्डले यदा । तदा वेगवती वृष्टिर्जायते यामपञ्चके || १०७५ || वर्षाकाल में सूर्य चन्द्रमा का यदि परिवेष हो तो चार दिन के अन्दर पृथ्वी पर वर्षा होती है ॥१०७० || प्रातः काल में पश्चिम दिशा में यदि इन्द्रधनुष का उदय हो तो उसी दिन पांच प्रहर में मेघ पृथ्वी को डुबा देता है ।। २०७१ || जिस राशि में पर्व हो उस राशि से क्रयाक कहें, यदि वह राशि बहु से पीडित हो तो बहुत महर्ष वस्तु मिले ||१०७२ ।। जिस राशि में मंगल जाता है उस राशि में निश्चय क्रयायक म होता है || १०७३ ।। मकर में मंगल हो तो सौख्य होता है, और कुम्भ से पांच राशि में बरि मंगल जाय तो दौस्थ्य होता है ||१०७४ || यदि वारुण मण्डल में पांच याम परिवेष हो तो पांच वर्ष तक बहुत वृष्टि होती है || १०७५।। 1. हिनात् for तद्दिनं Bh 2. शून्यं चक्रं Bh. 4, तम: for ततः Bh. 6. व for मूल्यं A. 3. a for for वर्षे A.

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