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( २०२ ) लोहभेदाः रसाः सर्वे शीघ्रं भवन्ति सस्पृहाः। नक्षत्रैर्वारुणैर्वापि बुधवारेण संक्रमे ॥ १०९२॥ पच्यन्ते धान्यभेदास्तु रत्नान्यम्भोधिजानि च । नक्षत्रः पार्थिवैर्वापि सूर्यवारसमन्वितैः॥ १०९३ ॥ सस्पृहा ये सुगन्धाढ्या वारणादिचतुष्पदाः । अथवा सर्वमासेषु पूर्णिमायां दिवानिशम् ॥ १०९४ ॥ अन्वेषयेत्तदुत्पातात् परिवेषोर्कसोमयोः । यस्मिन्मण्डलधिष्ण्ये च दुनिमित्तं च दृश्यते ॥ १०९५ ॥ तन्मण्डलस्य वाच्याश्च क्षणाद्भवन्ति सस्पृहाः । एवं द्वारेण संक्रान्तेरर्घकाण्डं प्रदर्शितम् १०९६ ॥
अथ मण्डलानि ज्येष्ठानुराधारोहिण्यो धनिष्ठा श्रवणस्तथा । अभीचिरुत्तराषाढा शुभं माहेन्द्रमण्डलम् ॥ १०९७ ॥
यदि वारुगा मंडल नक्षत्र में बुधवार रवि की संक्रान्ति हो तो लोहा तथा रस जाति सस्पृहा होती है ॥ १०६२ ।।
यदि माहेन्द्र मण्डल नक्षत्र में रविवार रवि की संक्रान्ति हो तो धान्यादि, तथा रत्न, और समुद्र से उत्पन्न होने वाले मुक्ता आदि पचित होते हैं ॥ १०६३ ॥
और सुगन्धित द्रव्य, हाथी आदि के चतुष्पद भी सस्पृह होते है. अथवा सब मासों में पूर्णिमा को रात्रिन्दिवा देखें ।। १०६४ ॥
उत्पात से तथा सूर्य चन्द्रमा के परिवेष से अन्वेषगा करें जिस मण्डल के नक्षत्र में दुनिमित्त देख पड़े ।। १०६५ ।।
उस मण्डन को उसी क्षण सस्पृहा कहें. इस प्रकार संक्रान्ति के द्वारा भर्घ काण्ड को दिखलाया ॥ १०६६ ।।
अथ मण्डलानि ज्येष्ठा, अनुराधा, रोहिणी, धनिष्ठा, श्रवगा, तथा अभिजित उत्तराषाढ़ा, ये नक्षत्र माहेन्द्र मंडल कहलाते हैं यह मण्डल शुभकारक होता है ।। १०६७ ॥
1. वारुणा for वारणा A. A.