Book Title: Trailokya Prakash
Author(s): Hemprabhsuri
Publisher: Indian House

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Page 263
________________ ( २११ ) 1 ये लब्धा सितिकाः शेषं चतुर्गुण्यं हृतं ततः । 2 तेनैव पूर्वभागेन भक्तेन माणकाः पुनः ।। ११५२ ।। यच्छेषं तच्चतुर्गुण्यं तेन भागेन पल्लिका | ततोऽपि मूललब्धार्यं द्विधा कृत्वा पुनर्भजेत् ॥ ११५३ ॥ त्रिक्रवेदशराचैव लब्धमुपरि मे क्षिपेत् । तल्लब्धं सेतिकामध्ये वक्रश्चेत् त्रिगुणं क्षिपेत् ।। ११५४ ॥ स्वगेहे मित्रगेहे च द्विगुणमेव विन्यसेत् । शत्रौ पापे च नीचे च लब्ध्वाधं तत्र पातयेत् ।। ११५५ ॥ संगुण्यभागः शेषं लब्धं च माणकास्ततः । श्रीमद्धेमप्रभेणैवं वर्तिनी दर्शिता स्वयम् ।। ११५६ ॥ श्रीमद्देवेन्द्र शिष्य श्री हेमप्रभसूरिविरचितमर्धकाण्डम् | लब्ध सेतिका हुआ शेष को चार से गुणा कर उसी पूर्व के भाजक से भाग दे तो माणक हो जायगा ।। ११५२ ।। तब जो शेष बच्चे उसको बार से गुगा कर उसी से फिर भाग दे तो पल्लिका होगी, तो भी मूल लब्धार्ध को दो जगह स्थापित करके फिर उस भाजक से भाग दें तीन, चार, पांच लब्ध के उपर के नक्षत्रों जोड़ दें. तब जो लब्ध हो वह सेतिका में यदि वक्र हो तो त्रिगुणित क्षेप करें ।। ११५३ - ११५४।। यदि अपने घर में या मित्र के घर में हो तो द्विगुण न्यास करें और शत्रु या पाप के घर में या नीच में हो तो लब्धार्ष में आधा घटा देवें ।। ११५५।। उसको चार से गुणा कर भाऊक से भाग देवें तो मायाक होता है यह प्रकार श्रीमान् हेमप्रभसूरि ने स्वयं दिखलाया है ||११५६ ॥ इति श्री मद्देवेन्द्र शिष्य श्रीहेमप्रभसूरिविरचितमर्धकाण्डम् | 1. सेठिका: for सितिकाः Bh. 2. भक्तेन वनका: for भक्तेन मायकाः Bh. 3. लब्धस्वपरिनि for लब्धमुपरि में Bh. 4 पर for मित्र Bh. 6. द्विगुणेनैव for द्विगुणमेव A.

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