Book Title: Trailokya Prakash
Author(s): Hemprabhsuri
Publisher: Indian House

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Page 248
________________ ( १६७ ) पूर्वात्रयं मूलमवा च सार्पिरौद्री च हीना तिथितो यदि स्यात् । कुहूदिने चैव कणा महर्षाः पूर्वार्धतः स्युर्जगतीविहीनाः ॥ १०६४॥ मार्गादिपञ्चमासेषु आद्यपक्षे तिथिक्षयः दौस्थ्यं वा छत्र मंगो वा जायते राजविध्वरः || १०६५।। शुक्लपक्षे यदा शुक्रः करोत्यस्तमनोदयम् । राजपुत्रसहस्राणां महीपति शोणितम् ||१०६६॥ आदित्यग्राकाले च दुर्भिक्षं प्रायशः पनः । तत्तिथिधिष्ण्यवाच्यानि महर्षाणि भवन्ति हि ॥ १०६७|| द्वयोरपाढयोमध्ये यदा पर्वत्रयं भवेत् । क्षितौ भवेन्महायुद्धं नृपमृत्युः स्फुटः स्मृतः ||१०६८।। तिष्यपुष्यमात्राह्मी रेवतीत्युत्तरेषु च । यदा शनिर्भवेद् वाच्यो विग्रहोsपि तदा महान् ।। १०६९॥ पूर्व फल्गुनी, पूर्वापाढ़ पूर्वभाद्र, मूल, मघा, अश्लेषा, आर्द्रा, ये नक्षत्र यदि तिथि से हीन हो तो अमावास्या में पूर्वार्ध से कण मह होता है और पृथ्वी शस्यहीन होती है ।। १०६४ || मार्गशीर्ष आदि पांच मासों के शुक्ल पक्ष में यदि तिथिक्षय हो तो दुःस्थिति, तथा छत्रभंग, राजाओं में विग्रह होता है || १०६५|| जब शुक्ल पक्ष में शुक्र का अमन तथा उदय हो तो हजारों क्षत्रियों का शोणित पृथ्वी पीनी है ।। १०६६ ।। सूर्य के ग्रहण काल में प्राय: दुर्भिक्ष होता है, उस तिथि नक्षत्र में महर्ष होता है ।। १०६७ ॥ पूर्वापाढ़ तथा उत्तराषाढ़ नक्षत्र के मध्य में तीनों पर्व ( चतुर्दशी, अमावास्या, पूर्णिमा ) हों तो पृथ्वी पर महायुद्ध होता है और राजा. का नाश होता है ||१०६८।। स्वाती, पुण्य, मघा, रोहिणी, रेवती, उत्तरफल्गुनी; उत्तराषाढ़, उत्तरभाद्र, इन नक्षत्रों में यदि शनि हो तो महान् विपड़ होना है ||१०६६।। 1. शुक्ल for आद्य A. 2. क्षये for क्षय: A.

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