Book Title: Trailokya Prakash
Author(s): Hemprabhsuri
Publisher: Indian House

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Page 221
________________ ( १७० ) पदेऽवश्यं पदाधिक्यं सर्वलाभं तु लाभगः । 1 धर्माद् व्ययं व्यये दत्ते नीचादौ स्वल्पकं फलम् ॥९९८ ॥ इति गुरुफलम् । सौभाग्यं स्यत्सिते वा सविभाग महस्त्रयम् । धने भवं धनाधिक्यं तृतीये भ्रातृपोषणम् ॥९९९ ॥ तुर्ये परस्त्रिया भोगो भोज्यं च मुरसं घृतात् । पञ्चमे बुद्धिसम्पत्तिः षष्ठे कुदुम्बविग्रहः ||९२०|| सप्तमे स्त्रीयाश्लेषोऽप्यष्टमे इलेपसंभवः । धनोत्पत्तिः स्वपत्नीभ्यः सविभाग महस्त्रयम् ||९२१ ।। पुष्ये सत्रप्रपादानमकस्माद् धनलब्धयः । पदे स्वोच्च शुभयुक्त राज्यं प्राज्यं भुवं मतम् ॥ ९२२ ॥ पद स्थान में यदि गुरु हो तो पद का आधिक्य होता है और लाभ में हो तो सब तरह का लाभ होता है, और व्यय स्थान में हो तो धर्म मार्ग में व्यय होता है, और वह गुरु यदि नीचादि में हो तो अल्प फल होता है ।। ६१८ ॥ याद शुक्र, लम में हो तो अपने विभागों के तीन दिन सौभाग्य होता है, और धन स्थान में हो तो धन का आधिक्य होता है तृतीय में हो तो भाई का पालन करता है, ।। ६१६ ।। तुर्थ में शुक्र हो तो दुसरी स्त्री के साथ भोग करे और घृत आदि के सुन्दर रस युक्त भोजन मिले, यदि पश्र्चम में हो तो बुद्धि, सम्पत्ति, होती है, और षष्ठ में हो तो कुटुम्ब का विग्रह होता है ।। ६२० ।। सप्तम में हो तो दो स्त्री से आप होता है और अष्टम भाव में भी श्लेष का सम्भव तथा अपनी स्त्री से धन की उत्पत्ति, विभाग से युक्त तीन दिन पर्यन्त ये फल होते हैं ।। ६२१ ॥ यदि शुक्र पुण्य भाव में हो तो यज्ञ तथा जलशाला दान इत्यादि से धन का लाभ होता है। यदि उच्च का शक्र शुभ ग्रहों से युक्त हो कर पद स्थान में हो तो विशिष्ट राज्य अवश्य मिले ||२२|| 1. नीचे गुरौ for नीयादौ Bh. 2. पुण्ये for पुष्ये A., पुण्यो A.

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