Book Title: Trailokya Prakash
Author(s): Hemprabhsuri
Publisher: Indian House

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Page 231
________________ ( १८० ) तुलापटकविपर्याये ज्ञातिवारोऽपि संतते । ज्येष्ठ शुद्वितीयेन्दोत्रह्मयोगे महघकः ।। ९६८ ॥ aarat वारः समासाद्य वासरे। भवेत्तदा त्रिभिर्मासैर्मह्यं जायते ध्रुवम् ॥ ९६९ ॥ मासाद्यदिवसे वारो बुधो भवति चेद् यदा । R मात्र मह स्याद् भावे वर्ष विनश्यति ।। ९७० ॥ अमावास्यातियो धिष्ण्यं यदा भवति कृत्तिका । इतना क्षितौ नूनं वर्षे तत्र भविष्यति ॥ ९७९ ॥ पदाधिष्ण्ये यदा कम भवन्ति वा । तदा सर्व भवेद्वाच्यं मह भृतले तदा ।। ९७२ ।। सप्तम्यां सोमवारः स्यान्माध पक्षे मिते यदा । दुर्भिक्षं जायते रौद्रं विग्रहोऽपि च भूभुजाम् ॥ ९७३ ॥ वारे चतुर्थे यदि पञ्चमे वा धिष्ण्ये तृतीये यदि पञ्चमे वा । पूर्वक्रमात्संक्रमणं यदा स्पानदा च दौस्थ्यं नृपविश्वरंच ॥९७४ तुलाद पट राशियों में बुध का अतिचार हो, और ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया में चन्द्रमा से रोहिणी का योग हो तो महर्ष होता है ॥६८॥ सब मासों के प्रथम बुध का ही बार हो तो तीन मास तक निश्चय म होगा ||६६६ ॥ का ही दिन हो तो तीन मास में महर्ष होता है ओर वर्ष पर्यंत उसका भाव न ही रहता है ||६७०|| यदि अमावास्या तिथि में कृत्तिका नक्षत्र हो तो उस वर्ष में ईति का उपद्रव पृथ्वी पर बहुत होता है ||६७१ || यदि पूर्वभाद्र नक्षत्र में पापग्रह हो तो पृथ्वी में सब वस्तु को • हर्घ ही कहना चाहिये ।।६७२ ॥ माघशुक्ल ममी को सोमवार हो तो बहुत कठिन दुर्भिक्ष होता है, और राजाओं का विग्रह भी होता है ।। ६७३ | बुध, या बृहस्पतिवार में और कृत्तिका या, मृगशिगनक्षत्र में पूर्व क्रम मे यदि संक्रान्ति हो तो दु:स्थिति होती है, और राजाओं का विपद भी होता है ||६७४ || चारे for वारो Bh.

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