Book Title: Trailokya Prakash
Author(s): Hemprabhsuri
Publisher: Indian House

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Page 208
________________ ( १५७ ) तुर्ये पुष्टे पतिः स्वीयो दत्ते परस्त्रिया धनम् । पदे सौम्ये निजा भार्या दत्ते जाराय सम्पदम् ॥। ८४४ ॥ तृतीयैकादशे ख्यातः प्रीतिर्वाच्या परस्परम् । अन्योन्यक्षेत्रगामित्वे तयोः प्रीतेः समानता ।। ८४५ ।। लग्ने गुरौ स्मरे शुक्रे नोढेन सुरतं मतम् । सुरूपाः पतयो बाह्याः सम्भवन्ति स्त्रियस्तदा ||८४६ || पतिप्राप्तिस्तु कन्यानां पुलः पु' प्रहरपि । 3 द्रेष्काणैर्नर संज्ञस्तु स्यात् ग्रहनवांशकः ॥ ८४७॥ सप्तमे चन्द्रशुक्राभ्यां कन्याप्तिः स्याद्वरस्य च । सप्तमे सितचन्द्राभ्यां वरलाभोऽपि योषिताम् ॥। ८४८ ॥ यदि चतुर्थ स्थान पुष्ट हो तो स्वामी दूसरे की स्त्री को धन देता है और शुभ ग्रह पद स्थान में हो तो स्त्री जार को सम्पत्ति देती है || ८४४|| यदि लग्नेश, प्रमेश, दोनों तृतीय, एकादश में हों तो बहुत ख्यात होता है और प्रापस में परस्पर प्रेम रहता है, और दोनों परस्पर एक दूसरे के घर में हों तो खी पुरुष को परस्पर समान प्रेम होता है ।। ८४५ ।। यदि लग्न में गुरु हो और सप्तम में शुक्र हो तो नवोढ़ा के साथ सुरत कहना चाहिये । उस में स्त्री तथा पुरुष दोनों को बहुत सुन्दर कहना चाहिये ॥ ८४६ ॥ यदि पुरुष राशि लग्न हो तथा पुरुष ग्रह हो और पुरुष संज्ञक राशि का द्रेष्काण तथा नवमांश हो तो कन्या को पति की प्राप्ति होती है ॥ ८४७ ॥ वर की कुण्डली में सप्तम में चन्द्रमा, शुक्र हो तो वर को कन्या प्राप्ति होती हैं और स्त्री की कुण्डली शुक्र, चन्द्रमा, यदि सप्तम में हो तो वर लाभ होता है । ८४८ ॥ 1. तुष्ट for पुष्ट A 2 पतिः स्त्रीयो Bh पतिस्त्रियो mss - 8. o for : A.

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