Book Title: Trailokya Prakash
Author(s): Hemprabhsuri
Publisher: Indian House

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Page 236
________________ ( १८५ ) मृगादिदशकं चापि धनिष्ठापञ्चसंयुतम् । पञ्चकनामकं ज्ञेयमर्घनिर्णयहेतुकम् ॥ ९९६ ॥ त्रियोगे त्रिको योगः पञ्च पञ्चकः पुनः । गृह्यते च त्रिके योगे दीयते पञ्चके धनम् ।। ९९७ । त्रिके च जीवराशेश्व क्रूरा यदि त्रिके गताः । 1 अन्योन्यं वा त्रिके च स्युर्गृह्यते तत्क्रयाणकम् ॥ ९९८ ॥ पञ्चके जीवराशेस्तु गच्छन्ति यदि पञ्चके । अन्योऽन्यं पञ्चकं वा स्युदीयते तचदेव हि ।। ९९९ ॥ यथा धिष्ण्ये त्रिके चन्द्रः क्रेतव्यं तत्क्रयाणकम् । यदा च पञ्चके चन्द्रो विक्रेतव्यं तदाखिलम् ।। १००० ॥ मृगशिरा, श्रार्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्व फल्गुनी, उत्तरफल्गुनी, हस्त, चित्र, और धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वभाद्र उत्तरभाद्र, रेवती, इन नक्षत्रों को अर्घ निर्णय के लिये पंडित पचक संज्ञक कहते है ॥६६६॥ त्रिकयोग में त्रिकयोग होता है और पज्ञक नक्षत्र के योग में पाक योग होता है, त्रिक योग में वस्तु मइया करना चाहिये, और पलक योग में वस्तु देना चाहिये ||६६७ ! | यदि गुरु के राशि त्रिक में हों या पापग्रह त्रिक में वा दोनों परस्पर त्रिक में हों तो खरीद करने योग्य वस्तु को प्रहण करना चाहिये ||६६८|| यदि गुरु की राशि पञ्चक में हो या पापग्रह पञ्चक में हो वा दोनों परस्पर पचक में हों तो उस वस्तु को उसी समय देना चाहिये | ६६६॥ अब चन्द्रमा त्रिक में हो तो खरीदने योग्य वस्तु को खरीदना चाहिये, यदि चन्द्रमा पश्चक में हो तो उस सब वस्तु को उसी समय बेच लेना चाहिये ||१००० || 1 पoes for बात्रिके A

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