Book Title: Trailokya Prakash
Author(s): Hemprabhsuri
Publisher: Indian House

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Page 211
________________ ( १६० ) स्वामी नष्टस्य लौरो नपतिर्भवेत् । चन्द्रार्को नष्टवित्तस्य ततस्तेभ्यो विनिर्णयः || ८६० ॥ स्थिरषड्वर्गबाहुल्ये सौम्ययोगे विलोकिते । प्रपश्यति न तमष्टं नष्टं चेत्स्वामिना हृतम् || ८६१ || लग्ने मृगाल्यो मिथुनः स मेपः शुभाश्रयोऽसौ दशमोपगश्च । नष्टस्य लाभं कुरुते सदैव बलाद्वियुक्तो बलदृष्टिपुष्टः ||८६२|| 'शुभेक्षिता वृचिकमेपकन्या कर्का भवेयुर्यदि कर्मसंस्थाः । प्रनष्टलfor: प्रथम रो रो (?) शुभोदया वा भवनाय जन्तोः छिद्रे चौरो धने वस्तु सप्तमे वस्तुसंस्थितिः । 3 2 एवंगतपरिज्ञाने गतस्थानविनिश्वयः || ८६४ लग्नेश, नष्ट का स्वामी, और यूनेश चोर के स्वामी और चन्द्रमा, सूर्य, नष्ट वस्तु का, इस लिये इन सब के बलाबल्ल के अनुसार नष्ट वस्तु का निर्णय करें || ८६० ॥ प्रश्नकाल में स्थिर राशि के षड्वर्ग की विशेषता हो और शुभ महों का योग तथा दृष्टि हो तो उस वस्तु को नष्ट नहीं कहना चाहिये यदि नष्ट भी हो तो उसके मालिक ने उस वस्तु को हरा कर लिया है। ऐसा कहना चाहिये || ८६१ ॥ यदि मकर, मिथुन, वा मेष लग्न हो और उसका शुभ ग्रहों से सम्बन्ध हो, तथा शुभ मह दशम स्थान में हों तो बलवान् तथा शुभ ग्रहों की दृष्टि से पुष्ट हो तो नष्ट वस्तु का लाभ होता है || ८६२ ।। , यदि दशम भाव मे वृश्चिक, मेष, कन्या, कर्क राशि हो और शुभ ग्रह से दृष्ट हो, चर राशि लग्न हो और शुभ ग्रह से सम्बन्ध हो तो नष्ट वस्तु का लाभ होता है । ८६३ ॥ अष्टम भाव से चोर, धन भाव से वस्तु, सप्तम से वस्तु की संस्थिति, इन स्थानों के परिज्ञान से गत स्थान का निश्चय करें || ८६४ ॥ 1. शुभाद् for बलाद् A. 2. गति for गति Bh. 3, वस्तु for Bh.

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