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पांमा पलट गया
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डालने का प्रयत्न किया, जिसने हमे लाख के महल मे जला मारने का षडयन्त्र रचा, जिसने सती द्रौपदी को भरी सभा मे अपमानित किया, जिसने कपट से आपका राज्य छीन लिया, उस नीच को भला हम कैसे अपना भाई माने ?"
__ "नही भीम ! हमे अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। तुम तो धर्म का ज्ञान रखते हो, वह अन्धा हो गया, तो क्या हम भी अन्धे बन जायें। वह जो कर रहा है, अपने लिए ही बुरा कर रहा है । - जो दूसरे के लिए गड्ढा खोदता है, वही उसमे गिरता भी है। उस ने हमे चिडाने का प्रयत्न किया, उसे इसका फल मिल गया। हमे अपने कर्तव्य से नहीं चूकना चाहिए" - युधिष्ठिर ने शाति पूर्वक कहा । ।
भीम और युधिष्ठिर की बाते हो ही रही थी कि वन्दी दुर्योधन और उसके साथियो का अत्तिनाद सुनाई दिया। युधिष्ठिर व्याकुल हो उठे और अपने भाईयो से बोले- "भीमसेन की बात ठीक नही है। भाईयो ! हमे अभी ही जा कर दुर्योधन को छुड़ा लाना चाहिए।" -
युधिष्ठिर के आग्रह पर भीम और अर्जुन दौड पडे और जाते हो गधर्वो की सेना पर टूट पडे । चित्रागद ने जव अर्जन को देखा तो उसका क्रोध शात हो गया। उसने कहा-"मैंने तो दुरात्मा कोरवो को शिक्षा देने के लिए ही यह किया था। यदि आप चाहते हैं तो मैं इन्हे अभी हो मुक्त किए देता है । .
यह कह कर चित्रागद ने उन्हे तुरन्त बन्धन मुक्त कर दिया श्रार साथ ही प्राज्ञा दी कि वे इसी समय हस्तिनापुर लौट जाये। अपमानित कौरव तुरन्त हस्तिनापुर की ओर चल पड़े। कर्ण जो __ पहले ही भाग चुका था, रास्ते में दुर्योधन को मिला।..
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दुर्योधन बड़ा ही दुखित था, उसे अपने अपमान का, इस अपमान का कि इतने विशाल राज्य के उत्तराधिकारी को गंधर्व राज