Book Title: Shukl Jain Mahabharat 02
Author(s): Shuklchand Maharaj
Publisher: Kashiram Smruti Granthmala Delhi

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Page 606
________________ ५९८. जैन महाभारत ܐܙ 404 समाचार जाकर सुनाता हू यह कहकर वह अपने मामा कृपाचार्य और कृतवर्मा के साथ उस स्थान की ओर चला, जहां दुर्योधन- अन्तिम घड़िया-गिन रहा था । - C महत X -TO-A t X X 6 - दुर्योधन के पास पहुंच कर यश्वस्थामा ने हर्षातिरेक से कहा"महाराज- दुर्योधन - आप भी जीवित है क्या ? देखिये, मैं आपके लिए कैसा शुभ समाचार लाया हूँ, जिसे सुनकर आपका कलेजा अवश्य ही ठण्डा हो जायेगा और श्राप शांति से मर सके । देखिये । मैंने कृपाचार्य व कृतवर्मा ने सारे पांचाल समाप्त कर दिए । पाण्डवो के भी सारे पुत्र हमने मार डाले। द्रौपदी का कोई पुत्र जीवित नही छोडा । पाण्डवो की सारी सेना को हमने या तो जलाकर मार डाला अथवा कुंचल कर या ग्रग प्रत्यग तोड़ कर खत्म कर डाला। इस प्रकार पाण्डवो के वोरो और सनिको का सर्वे नाश हो गया, वंस पाण्डवों के पक्ष में ग्रव ज्ञात ही व्यक्ति जीवित है और आपके पक्ष के हम तीन अव तो श्रापको अवश्य ही शांति मिली होगी । हम ने उन सभी को सोते हुए ही जा घेरा था और इस प्रकार आपके साथ हुए अन्याय का वदला ले लिया ।" ट्रो I J • -दुर्योधन को यह समाचार-सुनकर अपार हर्ष हुआ, वोला "प्रिय गुरु भाई ! आज तुमने वह कार्य किया है जिसे भीष्म पितामह, वीर कर्ण और द्रोणाचार्य भी न कर पाय । मेरी आत्मा सन्तुष्ट हो गईं ' अव मैं शांति पूर्वक मर सकूंगा । तुम्हारे समाचार सुनने के लिए ही जी रहा था ।" इतना कह कर दुर्योधन ने तीन हिचकिया ली और उसके प्राण पखेरू उड़ गए। f 37 1 1 in J 1 X X XTM x पाण्डवों को अपनी सेना, अपने वीरों और द्रौपदी के पुत्रों के इस प्रकार मारे जाने से बड़ा ही दुख हुआ । युधिष्ठिर बोले- "प्रभो अभी हमे विजय प्राप्त हुई थी । और मैं समझता था कि यह नागकारी युद्ध समाप्त हो गया । पर अश्वस्थामा के पापों हाथों ने पोसा पलट दिया। उसने एक पाप करके हमारी जीत को भी पराजय मे परिवर्तित कर डाला । ओह ! हम क्या जानते थे कि द्रोण पुत्र अश्वस्थामा इतना नीच हो सकता है । सोते शत्रुओं पर तो आज 1

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