Book Title: Shukl Jain Mahabharat 02
Author(s): Shuklchand Maharaj
Publisher: Kashiram Smruti Granthmala Delhi

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Page 603
________________ " अश्वस्थामा < すみ ܐ ܕ पाण्डवों ने तुम्हारे यशस्वी पिताका असत्य भाषण के द्वारा वध किया था ।" ५९५ 2 X X - 27 X. सूर्य डूब चुका था, रात्रि का अन्धकार धीरे धीरे वढ रहा था । चारो ओर अन्धेरा ही अन्धेरा था । तारों के धूमिल प्रकाश के होते हुए भी अन्धकार का साम्राज्य छाया था । अश्वस्थामा, कृपाचार्य 'और कृतवर्मा एक बरगद के पेड़ के नीचे रात बिता रहे थे । कृत और अवस्थामा बहुत थके हुए थे, वे पडते ही खर्राटे भरने लगे । पर विद्वद्वेष की ज्वाला मे जल रहे अश्वस्थामा को नीद कहां । वह तो पांण्डवों के नाश का उपाय सोच रहा था । 1 "2 1 चारो ओर कई प्रकार के पशु पक्षियो की बोलियां गूंज रही थी । उनके होते हुए भी अश्वस्थामा की विचार तरग चल रही थी । उस बरगद की शाखाओ पर कौरवो के झुण्ड के झुण्ड बसेरा - कर रहे थे । रात्रि में वे सब सोये हुए थे कि कही से एक उल्लू उड़ कर श्राया और आते ही उन सोते, कौथो पर प्रहार कर दिया । एक एक करके चोचे मार मार कर उल्लू उन्हें चीरने - फाड़ने लगा । रात का समय था । उल्लू तो भलि भाँति देख रहा था, किन्तु कौओ को अन्धेरे मे कुछ दिखाई ही नही देता था । वे चिल्ला चिल्ला कर 'मर गए । अकेले उल्लू के प्रागे सैकडो कीओ की भी एक न चली। यह देख श्रश्वस्थामा सोचने लगा - " जिस प्रकार अकेले उल्लू ने सोते हुए सैकडो कौओ को मार डाला, यदि में भी सोते हुए पाण्डवो, जिन्होंने मेरे साथियो को मार डाला है, धृष्टद्युम्न जिसने मेरे पिता की हत्या की और उनके साथियो पर आक्रमण कर दू तो उन्हें मार सकता हू । वे बहुत है, मैं अकेला हूं। इसी प्रकार में उनसे बदला ले सकता हू । वे सोते होगे, इस लिए मेरा सामना न कर पायेंगे ।" तभी उसके मन मे प्रश्न हुया - क्या यह धर्म युक्त कार्य "होगा ?" 5 अवस्थामा सोचने लगा- "पाण्डवो ने भी तो प्रधर्म से मेरे पिता का वध किया है, भीम ने भी तो अधर्म से दुर्योधन की जाध तोड़ी है। फिर धर्म पाण्डवों को अधर्म से मार डालने मे क्या

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