Book Title: Shukl Jain Mahabharat 02
Author(s): Shuklchand Maharaj
Publisher: Kashiram Smruti Granthmala Delhi

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Page 582
________________ जैन महाभारत परन्तु अर्जुन तो कौरव सेना से भिड़ा था. फिर उसे यह बात भी भली नही लगी थी कि जब वह सात्यकि को युधिष्टिर की रक्षा का भार सौंप कर आया था, तो सात्यकि वहां युधिष्टिर को छोड़कर चला क्यो आया । इसलिए वह युद्ध करने मे दत्तचित्त रहा। उसने सात्यकि की चिन्ता नही की । ५७२ परन्तु श्री कृष्ण ने पुन अर्जुन का ध्यान उसी ओर खींचा। बोले - " अर्जुन ! सात्यकि को जब भूरिश्रवा ने युद्ध के लिए ललकारा था, वह तभी थका हुआ था और अव तो वह बहुत ही थक गया है। उसकी रक्षा करो वरना तुम्हारा प्रिय मित्र भूरिश्रवा के हाथो मारा जायेगा ।" इतने में भूरिश्रवा ने सात्यकि को दोनों हाथो मे दबोच कर ऊपर उठा लिया और भूमि पर पटक दिया । कौरव सैनिक चीख पडे - "सात्यकिं मारा गया । सात्यकि मारा गया । " "अजुन । देखो वृष्णि कुल को सब से प्रतापी वीर मात्यकि भूमि पर ग्रसहाय सा पडा है । ज' तुम्हारे प्राण बचाने और तुम्हारी सहायता करने आया था उसी की तुम्हारे तुम्हारे देखते ही देखते तुम्हारा मित्र अपने प्राण गवाने वाला है श्री कृष्ण ने अर्जुन से - एक बार पुन सात्यकि की सहायता करने का आग्रह किया । सामने हत्या हो रही है । 69 f अर्जुन ने देखा कि भूमि पर पड़े उनके मित्र सात्यकि को भूरिश्रवा उसी प्रकार खीच रहा है, जिस प्रकार सिंह हाथी को घसीट रहा हो । यह देख प्रजुन भारी चिता मे पड गया । उसे कुछ सूझ न पड़ा कि क्या करे ? - जुन ने श्री कृष्ण से कहा- मधु सूदन । भूरिश्रवा मुझ से नही लड रहा, फिर मैं क्या करू ? जब कोई वीर दूसरे से लड़ रहा हो तो तीसरे को उस मे हस्तक्षेप करने का अधिकार नही होता । पर मैं अपने मित्र का वध भी अपनी श्राखो के श्रागे नही देख सकता अब आप ही बताईये कि 1 क्या करू ܝܕ ܕ श्री कृष्ण बोले--"अर्जुन | कई वीरों से युद्ध कर चुकने के कारण सात्यकि अब निहत्था, निसहाय और थका हुआ है, वह बुरी

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